हित हरिवंश गोस्वामी -ललिताचरण गोस्वामी पृ. 102

श्रीहित हरिवंश गोस्वामी:संप्रदाय और साहित्य -ललिताचरण गोस्वामी

Prev.png
सिद्धान्त
युगल-केलि (प्रेम-विहार)

नवल नागरि, नवल नागर किशोर मिलि,
कुंज कोमल कमल-दलनि सिज्‍या रची।
गौर साँवल अंग रुचिर तापर मिले,
सरस मणि-नील मानो मृदुल कंचन खची।।
सुरत नीवी निबन्‍ध हेत प्रिय मानिनी,
प्रिया की भुजनि में कलह मोहन मची।
सुभग श्री फल उरज पानि परसत रोष,
हुंकार गर्व द्दग-भंगिम भामिनि लची।।
कोक कोटिक रभस रहसि हरिवंश हित,
विविध कल माधुरी किमपि नाहिन बची।
प्रणय मय रसिक, ललितादि लोचन चषक,
पिवत मकरंद सुख-रासि अंतर सची।।[1]

इसीलिए, श्रीध्रुवदास ने कहा है ‘युगल की अद्भुत काम केलि राग-रंग से युक्त प्रेम-रस है और उस में क्षण-क्षण में आनंद-सिन्‍धु के तरंग उठते रहते हैं।

राग-रंग जुत प्रेम-रस अद्भुत केलि-अनंग।
छिन्न-छिन्न आनंद-सिन्‍धु के उठिबौ करत तरंग।।

Next.png

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. हि. च. 50

संबंधित लेख

श्रीहित हरिवंश गोस्वामी:संप्रदाय और साहित्य -ललिताचरण गोस्वामी
विषय पृष्ठ संख्या
चरित्र
श्री हरिवंश चरित्र के उपादान 10
सिद्धान्त
प्रमाण-ग्रन्थ 29
प्रमेय
प्रमेय 38
हित की रस-रूपता 50
द्विदल 58
विशुद्ध प्रेम का स्वरूप 69
प्रेम और रूप 78
हित वृन्‍दावन 82
हित-युगल 97
युगल-केलि (प्रेम-विहार) 100
श्‍याम-सुन्‍दर 13
श्रीराधा 125
राधा-चरण -प्राधान्‍य 135
सहचरी 140
श्री हित हरिवंश 153
उपासना-मार्ग
उपासना-मार्ग 162
परिचर्या 178
प्रकट-सेवा 181
भावना 186
नित्य-विहार 188
नाम 193
वाणी 199
साहित्य
सम्प्रदाय का साहित्य 207
श्रीहित हरिवंश काल 252
श्री धु्रवदास काल 308
श्री हित रूपलाल काल 369
अर्वाचीन काल 442
ब्रजभाषा-गद्य 456
संस्कृत साहित्य
संस्कृत साहित्य 468
अंतिम पृष्ठ 508

वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                                 अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र    अः