श्रीहित हरिवंश गोस्वामी:संप्रदाय और साहित्य -ललिताचरण गोस्वामी
साहित्य
अर्वाचीन काल (1875)
श्री भोलानाथ जी का जन्म वर्तमान मध्य प्रदेश के भेलसा नगर में संं. 1947 के आषाढ़ कृष्णा 6 को हुआ था। भगवत मुदित जी के रसिक अनन्य माल में गोस्वामी दामोदर वर जी (सं. 1634-1714) के शिष्य जिन रसिक दास जी का चरित्र दिया हुआ है, वे भी भेलसा के ही रहने वाले थे और आज भी वहाँ इस संप्रदाय के अनेक अनुयायी विद्यमान हैं। भोलानाथ जी के पिता का नाम छेदालाल जी था। वे सक्सेना कायस्थ थे। इनके एक भाई बैजनाथ जी सब जज हो गये, और दूसरे शंभुनाथ जी वकील थे। भोलानाथ जी को बाल्य काल से ही भगवत्-प्राप्ति की धुन थी और किशोरावस्था में ही वे योग्य गुरु की खोज में घर से निकल पड़े थे। उस समय उनके बडे़ भाई बैज्नाथ जी कोलारस, जिला शिवपुरी में नाज़िर थे। दस बारह दिन की खोज के बाद भोलानाथ जी नरसिंह पुर जिले के जंगलों में भटकते हुए मिले और अपने भाई के पास कोलारस लाये गये। बैजनाथ जी ने उनको कोलारस के गोपाल जी के मंदिर के अन्यतम सेवाधिकारी पं० गोपीलाल जी से राधावल्लभीय संप्रदाय की दीक्षा दिलवादी। अपने गुरु को आज्ञा से उन्होंने गृहस्थ–जीवन व्यतीत करना स्वीकार कर लिया और विवाह करने को सहमत हो गये। भोलानाथ जी ने, प्रारम्भ में, मैट्रिक तक शिक्षा प्राप्त की और फिर बजरंग गढ़ में अध्यापक हो गये। अध्यापन कार्य करते हुए उन्होंने इण्टर और बी. ए. पास किया। इसी काल में उन्होंने अखिल-भारतीय-रामायण प्रतियोगिता में भोग लेकर ‘मर्यादा पुरुषोत्तम राम’ पर लेख लिखा और उस पर प्रथम पुरस्कार प्राप्त किया। उनकी प्रतिभा से आकृष्ट होकर छतरपुर-नरेश राजा विश्वनाथ सिंह जी ने उनको अपने पास बुला लिया और वहाँ वे कई वर्ष राजा साहब के धार्मिक परामर्शदाता के रूप में काम करते रहे। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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