हित हरिवंश गोस्वामी -ललिताचरण गोस्वामी पृ. 101

श्रीहित हरिवंश गोस्वामी:संप्रदाय और साहित्य -ललिताचरण गोस्वामी

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सिद्धान्त
युगल-केलि (प्रेम-विहार)

केवल रास-क्रीड़ा ही नहीं युगल का संपूर्ण रास-विलास प्रेममय, सौन्‍दर्यमय, संगीतमय, नृत्‍यमय और अभिनय मय होता है। युगल की कटि-किंकिणी और चरण-नुपुरों से सदैव संगीत की मंद-मंद तरंगें उठती रहती हैं, उनके आभूषणों की ध्‍वनि सुनकर यमुना-तीर के हंस बोलने लगते हैं। ‘उनके गान को सुनकर खग-मृग पुलकित हो जाते हैं और जल का प्रवाह रुक जाता है।'

गावत सुन्‍दरि-हरि सरस धमारि।
पुलकित खग मृग बहत न वारि।।[1]

‘उनके नृत्‍य- अभिनय को देखकर उड्डगण चकित हो जाते हैं; शशि-मंडल थकित हो जाता है और कोटि काम देवों के मन लुट जाते है।’

उड्डगण चकित थकित ससि-मंडल कोटि मदन-मन लूटे।[2]

यह दोनों श्रृंगार की कलाओं में भी अत्‍यन्‍त कुशल हैं, और परस्‍पर प्रेम-सौन्‍दर्य की आस्‍वाद बड़ी नागरता से करते हैं। श्रीहित हरिवंश को इनका नागर-नागरी रूप ही प्रिय है, और उसी का गान उन्‍होंने अपने पदों में किया है। एक पद में वे कहते हैं, ‘नवल नागरी और नवल नागर किशोर ने मिलकर, निकुंज-भवन में, कोमल कमल-दलों से शय्या की रचना की है, उस पर रुचिर ‘गौर-साँवल अंग’ इस प्रकार मिले हैं मानो रसर नीलमिण मृदुल कंचन में जड़ गई है। ‘सुरत नीवी-निबंध’ के लिये मानिनी प्रिया की भुजाओं में मनोहर कलह मची है। सुभग उरजों के स्‍पर्श करते ही नागरी प्रिया प्रणय- कोप से हुँकार करती है और रूप-गर्व से उनके द्दग भंगिमा-मंडित हो जाते हैं। नागर-नागरी के इस एकान्‍त विलास में श्रृंगार की करोड़ों समृद्ध कलाएँ प्रकाशित होती हैं। प्रणय मय रसिक ललितादिक सखियाँ अपने नेत्र रूपी, चषकों[3] से रस-मकरंद का पान करती रहती हैं।'

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. हि. च. 27
  2. हि. च. 63
  3. पान पात्रों

संबंधित लेख

श्रीहित हरिवंश गोस्वामी:संप्रदाय और साहित्य -ललिताचरण गोस्वामी
विषय पृष्ठ संख्या
चरित्र
श्री हरिवंश चरित्र के उपादान 10
सिद्धान्त
प्रमाण-ग्रन्थ 29
प्रमेय
प्रमेय 38
हित की रस-रूपता 50
द्विदल 58
विशुद्ध प्रेम का स्वरूप 69
प्रेम और रूप 78
हित वृन्‍दावन 82
हित-युगल 97
युगल-केलि (प्रेम-विहार) 100
श्‍याम-सुन्‍दर 13
श्रीराधा 125
राधा-चरण -प्राधान्‍य 135
सहचरी 140
श्री हित हरिवंश 153
उपासना-मार्ग
उपासना-मार्ग 162
परिचर्या 178
प्रकट-सेवा 181
भावना 186
नित्य-विहार 188
नाम 193
वाणी 199
साहित्य
सम्प्रदाय का साहित्य 207
श्रीहित हरिवंश काल 252
श्री धु्रवदास काल 308
श्री हित रूपलाल काल 369
अर्वाचीन काल 442
ब्रजभाषा-गद्य 456
संस्कृत साहित्य
संस्कृत साहित्य 468
अंतिम पृष्ठ 508

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