हित हरिवंश गोस्वामी -ललिताचरण गोस्वामी पृ. 468

श्रीहित हरिवंश गोस्वामी:संप्रदाय और साहित्य -ललिताचरण गोस्वामी

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साहित्य
संस्कृत-साहित्य

राधावल्लभीय संस्कृत-साहित्य का आरंभ हित प्रभु की रचनाओं से ही होता है। संस्कृत में हित प्रभु की दो कृतियां प्राप्त हैं, राधा सुधानिधि और यमुनाष्‍टक। राधा सुधानिधि की ऐतिहासिक स्थिति का‍ विवेचन पीछे हो चुका है। संस्कृत वाङ्मय में कदाचित् यह प्रथम ग्रन्थ है जो श्री राधा की वंदना से आरंभ होता है। इसके पूर्व किसी ग्रन्थ में यह बात नहीं देखी जाती। राधा सुधानिधि के वंगीय संस्करण में, इस ग्रन्थ को श्री प्रबोधानंद सरस्वती कृत सिद्ध करने के लिये, आरंभ में श्री चैतन्य-वंदना का एक श्‍लोक प्रक्षिप्त कर दिया गया है, जिससे इस ग्रन्थ की उपर्युक्त विलक्षणता नष्‍ट हो गई है।

राधा सुधानिधि में, हित प्रभु ने, अपने काल में प्रचलित श्री राधा के सब स्वरूपों का निर्देश किया है और उन सब के ऊपर उन के स्व-दृष्‍ट परात्पर प्रेम-स्वरूप को स्थापित किया है। यह स्वरूप अत्यन्त रहस्यमय है- मूर्त से विलक्षण, अमूर्त से‍ विलक्षण। इसके वर्णन में कहीं तो हित प्रभु एक से एक सुन्दर और अर्थ-‍गर्भित विशषणों का पंखानुपंख उपयोग कर देते है’।[1] कहीं सुन्दर सांग रूप को की अवतारणा कर देते [2]



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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. वैदग्ध्य सिन्धु रनुराग रसैक सिन्धु, वत्सिल्य सिन्धु रति सान्द्र कुपक सिन्धु:। लावण्‍य सिन्धु, रमृतच्छवि रूप सिन्धु:, श्री राधिका स्फुर‍तु में हदि केलि सिन्धु: ।।
  2. लसद्वदन पंकजा नव गभीर नाभि भ्रमा, नितंब पुलिनोल्लसन्मुखर कांचि कांदबिनी। विशुद्ध रस वाहिनी रसिक सिन्धु संगोन्मदा सदा सुरतरंगिणी जयति कापि वृन्दावने ।।

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विषय पृष्ठ संख्या
चरित्र
श्री हरिवंश चरित्र के उपादान 10
सिद्धान्त
प्रमाण-ग्रन्थ 29
प्रमेय
प्रमेय 38
हित की रस-रूपता 50
द्विदल 58
विशुद्ध प्रेम का स्वरूप 69
प्रेम और रूप 78
हित वृन्‍दावन 82
हित-युगल 97
युगल-केलि (प्रेम-विहार) 100
श्‍याम-सुन्‍दर 13
श्रीराधा 125
राधा-चरण -प्राधान्‍य 135
सहचरी 140
श्री हित हरिवंश 153
उपासना-मार्ग
उपासना-मार्ग 162
परिचर्या 178
प्रकट-सेवा 181
भावना 186
नित्य-विहार 188
नाम 193
वाणी 199
साहित्य
सम्प्रदाय का साहित्य 207
श्रीहित हरिवंश काल 252
श्री धु्रवदास काल 308
श्री हित रूपलाल काल 369
अर्वाचीन काल 442
ब्रजभाषा-गद्य 456
संस्कृत साहित्य
संस्कृत साहित्य 468
अंतिम पृष्ठ 508

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