श्रीहित हरिवंश गोस्वामी:संप्रदाय और साहित्य -ललिताचरण गोस्वामी
सिद्धान्त
नित्य-विहार
प्रेम-सौन्दर्य के दृष्टि में आते ही सम्पूर्ण दृष्टि बदल जाती है। इसको देखकर और सब देखना भुला जाता है। ‘जो एक बार इस छवि को देख लेता है उसको त्रिभुवन तृण सा लगता है। इस द्वार के भिखारी से सारा संसार भिक्षा माँगता है। जो यहाँ का हो जाता है वह अन्यत्र का नहीं रहता और युगल के रूप-लावण्य में पग जाता है। वह बेसुध और मतवाला बनकर सोता हुआ सा संसार में जागता रहता है।’ एक बार छवि देखो उसको त्रिभुवन तृन-सा लागै है। नित्य प्रेम के नित्य नूतन रूप का प्रत्यक्ष परिचय हुए बिना यहाँ केवल बुद्धि से कोई कार्य सिद्ध नहीं होता। श्री वृन्दावन दास कहते हैं ‘रसमय धाम की रसमय सृष्टि की कथा अलौकिक है। रासेश्वरी की कृपा के अतिरिक्त यहाँ अन्य कोई साधन नहीं है। इस सृष्टि को समझने के लिये विद्वान और अविद्वान सदैव बुद्धि-बल का प्रयोग करते रहे हैं और सदैव करते रहेंगे। प्रेम-रूप का स्पर्श हुए बिना यहाँ नीरस तर्क से काम नहीं चलता।' रस मय सृष्टि जहाँ रसमय कथा अलौकिक न्यारी। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ युगल-सनेह-पत्रिका
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