सूर विनय पत्रिका
अनुवादक - सुदर्शन सिंह
राग बिलावल
मुझे अपने अनन्य भक्ति दीजिये और (ऐसा कीजिये कि) यह ज्ञान (जो इस समय है) चित्त से दूर न हो। इस प्रकार बार-बार प्रार्थना करता हैं तब दसवें महीने में (गर्भ से) बाहर आता है। तब यह सब ज्ञान वह भूल जाता हैं बचपन में (भी) वह बहुत प्रकार से कष्ट पाता है; किंतु जिह्वा (बोलने की शक्ति) के बिना किसे कह कर सुनाये। कभी विष्टा में पड़ा रहता है, कभी मक्खियाँ आ कर लगती (काटती) हैं, कभी जुँएँ बड़ा कष्ट देती हैं; उनको (भी) वह हटा नहीं सकता। फिर जब छः वर्ष का हो जाता है, तब वह इधर-उधर खेलना चाहता है। जब-जब उसे माता-पिता रोकते हैं, तब-तब वह मन में दुःख पाता है। माता-पिता उसे अपना पुत्र समझते हैं और वह भी उनसे अपना सम्बन्ध मानता है। जब लगभग दस वर्ष बीत जाते हैं तब वह किशोर हो जाता हैं सुन्दरी स्त्री तब उससे विवाह कर लेती है, वह स्त्री उससे बहुत प्रकार के भोजन-वस्त्र चाहती है। प्रारब्ध के बिना वह (भोजन-वस्त्र) कहाँ से आये। (उनके न मिलने पर) वह अपने मन में बहुत दुःख पाता है। फिर धन पाने के लिये उद्योग करता है और जब उद्योग व्यर्थ जाता है, तब वह बहुत दुःख पा कर रहता हैं कहाँ तक कहा जाय, (जीव के दुःख का हाल) कहा नहीं जाता। फिर उसे बुढ़ापा आ घेरता है, सभी इन्द्रियों की शक्ति समाप्त हो जाती है, कानों से सुनाई नहीं पड़ता, आँखों से दीखता नहीं; कोई कुछ बात कहता है तो वह कुछ समझ नहीं पाता; जब भोजन भी नहीं पाता, तब अनेक प्रकार से मन में पश्चात्ताप करता हैं फिर वह दुःख पा-पा कर मरता है और भगवान् की भक्ति किये बिना नरक में पड़ता है। नरक में जा कर फिर बहुत दुःख पाता है। इसी प्रकार बार-बार (नरक से संसार में और संसार से नरक में) आता-जाता रहता हैं इतने पर भी वह श्री हरि का स्मरण नहीं करता, इसी से बार-बार दुःख भोगता है।
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