(257)
तुम बिनु साँकरै को काकौ ।
तुमही देहु बताइ देवमनि, नाम लेउँ धौं ताकौ ।।
गर्भ परीच्छित रच्छा कीनी, हुतौ नहीं बस माँ कौ ।
मेटी पीर परम पुरुषोत्तम, दुख मेट्यौ दुहुं-घाँ कौ ।
हा करुनामय कुंजर टेर्यौ, रह्यौ नहीं बल, थाकौ ।।
लागि पुकार तुरत छुटकायौ, काट्यौ बंधन ताकौ ।
अंवरीष कौं साप देन गयौ, बहुरि पठायौ ताकौं ।।
उलटी गाढ़ परी दुर्बासैं, दहत सुदरसन जाकौं ।
निधरक भए, पांडु-सुत डोलत, हुतौ नहीं डर काकौं ।।
चारो बेद चतुर्भुख ब्रह्मा जस गावत है ताकौं ।
जरासिंधु कौ जोर उघार्यौ, फारि कियौ द्वै फाँकौ ।।
छोरी बंदि बिदा किए राजा, राजा ह्वै गए राँकौ ।
सभा-माँझ द्रौपदि-पति राखी, पति-पानिप कुल ताकौ ।।
बसन-ओट करि कोट विसंभर, परन न दीन्हौं भंकौ ।
भीर परैं भीषन-प्रन राख्यौ, अर्जुन कौ रथ हाँकौ ?
रथ तै उतरि चक्र कर लीन्हौ, भक्तबछल-प्रन ताकौ ।
नरहरि ह्वै हिरनाकुस मार्यौ, काम पर्यौ, हौं बाँकौ ।।
गोपीनाथ सूर के प्रभु कैं बिरद न लाग्यौ टाँकौ ।।257।।
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