सूर विनय पत्रिका
अनुवादक - सुदर्शन सिंह
राग परज
श्यामसुन्दर के भजन बिना (मनुष्यता और) बड़प्पन क्या? बल, विद्या, धन, घर, रूप और गुण- ये सब तो झूठे सौदे हैं। राजा अम्बरीष, प्रह्लाद जी, राजा बलि-इन लोगों ने (भजन से ही) अत्यन्त ऊँचा पद प्राप्त किया। (श्रीराम ने) हाथ में धनुष लेकर युद्ध में (त्रिभुवनविजयी) रावण को जीता और लंका में भक्त विभीषण के प्रभुत्व की घोषणा हो गयी। भगवान् से विमुख होने के कारण उस दुर्योधन को पराजित होना पड़ा, जिसके सौ भाई शूरमा थे; किंतु पाण्डव पाँच होने पर भी प्रभु के चरणों का भजन करते थे, अतः श्रीयदुनाथ ने युद्ध में उन्हें विजयी बनाया। (भौमासुर के यहाँ बंदिनी) राजकुमारियों ने (श्रीकृष्णचन्द्र को) पतिरूप से पाने की इच्छा से स्मरण किया, भगवान् ने उनको असुर की कैद से छुड़ाया। सूरदास जी कहते हैं- उस समय (उन सोलह सहस्र राजकन्याओं का पाणिग्रहण संस्कार जब हुआ) बड़ा ही आनन्द बढ़ा। वेद करोड़ों मुख से (नाना प्रकार से) प्रभु के (भक्त-भयहरण) यश का गान करते हैं। |
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