सूर विनय पत्रिका
अनुवादक - सुदर्शन सिंह
राग धनाश्री
(प्रभो!) आपने मेरे-जैसे पतित का कब उद्धार किया? हे हरि! आप अपना (पतित-पावन) सुयश क्यों कहलवाते हैं? (अबतक) आपने ही ऐसे लोगों को तारा है, जिनके लिये आपको कोई परिश्रम नहीं करना पड़ा। गीधराज जटायु, व्याध, गजराज, अहल्या को तारने में आपका क्या अहसान? गणिका तो अपने कर्म से (स्वयं तोते को भगवन्नाम पढ़ाकर) तरी और प्रभु! तुम्हारा यश हो गया। रहा अजामिल, वह ठहरा ब्राह्मण और तुम्हारा पुराना भक्त, थोड़ी-सी भूल से आपने उसकी पहले तो इतनी दुर्गति की और फिर वैकुण्ठ में निवास दिया। जिन सब लोगों का आपने पतित समझकर उद्धार किया, उनमें तो कोई बुरा था ही नहीं। सूरदास जी कहते हैं- मैं झूठा एवं मूर्ख कवि हूँ (मेरी बात का बुरा न मानें) मैं तो तब (आपको पतित-पावन) जानूँगा, जब आप मेरा उद्धार करेंगे। |
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