सूर विनय पत्रिका
अनुवादक - सुदर्शन सिंह
राग कान्हरौ
अरे मन! संसार के परायण होकर जान-बूझकर ठगा गया। धन के मद में, कुल के मद में, स्त्री के मद में-इस प्रकार संसार के मद में (मतवाले बनकर) श्रीहरि को भुला दिया। कलि के दोषों को दूर करने वाले, पापों के निवारक श्रीश्यामसुन्दर का (गुण-) गान अपनी जीभ से नहीं किया। तोता जैसे सेमर के फला को रसमय जानकर चोंच मारे और (नीरस रूई पाकर) पछताये, ऐसे ही तू (संसार के भोगों में रस समझकर लगा और निराश होकर) पछताया। सत्कर्म, धर्मपालन, भगवान् की लीला, यश और गुण का गान-इस रसमयी छाया के नीचे नहीं आया (इनका आश्रय नहीं लिया)? सूरदास जी कहते हैं- कहो तो, भगवान् का भजन किये बिना सुख पाया कैसे जा सकता है? |
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