सूर विनय पत्रिका
अनुवादक - सुदर्शन सिंह
राग धनाश्री
(232) हे प्रभु! जिनके वश में अनेक देवगण आज्ञाकारी सेवक बनकर रहते हैं, वे (ब्रह्मा, शिव, इन्द्र आदि) भी आपकी कृपा चाहते हैं। (आपके भय से) वायु चलता है, चन्द्रमा और सूर्य घूमते रहते हैं तथा शेषनाग अपना सिर हिलाते तक नहीं। (आपके भय से ही) अग्नि अपना जलाने का गुण (उष्णता) छोड़ नहीं सकते, समुद्र (तट से बाहर) अपना जल, नहीं बढ़ाता (मर्यादा के भीतर रहता है)। शिव, ब्रह्मा तथा इन्द्र सहित सब आपके चरणों की बड़े चाब से सेवा करते हैं और आप उन्हें जो कुछ करने की आज्ञा देते हैं, वही-वही काम वे अत्यन्त आकुल हो कर (तत्परता से) करते हैं आप अनादि हैं, अज्ञेय हैं, अनन्त गुणों से पूर्ण परमानन्द स्वरूप हैं। हे मेरे स्वामी श्री वृन्दावन चन्द्र! सूरदास पर कृपा करो।
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