1.
|
अचंभौ इन लोगनि कौं आवै
|
59
|
2.
|
अजहूँ सावधान किन होहि
|
324
|
3.
|
अदभुत जस बिस्तार करन कौं
|
314
|
4.
|
अद्भुत राम नाम कै अंक
|
180
|
5.
|
अधम की जौं देखौं अधभाई
|
271
|
6.
|
अनाथ के नाथ प्रभु कृष्न स्वामी
|
313
|
7.
|
अपनी भक्ति देहु भगवान
|
360
|
8.
|
अपनै जान मैं बहुत करी
|
202
|
9.
|
अपुने कौं कों न आदर देइ
|
250
|
10.
|
अब कैसै पैयत सुख मांगे
|
88
|
11.
|
अब कैं नाथ, मोहिं उधारि
|
188
|
12.
|
अब तुम नाम गहो मन नागर
|
181
|
13.
|
अब धौं कहो, कौन दर जाउँ
|
278
|
14.
|
अब मन, मानि धौं राम दुहाई
|
142
|
15.
|
अब मेरी राखौ लाज मुरारी
|
321
|
16.
|
अब मैं जानी, देह बुढानी
|
129
|
17.
|
अब मैं नाच्यौ बहुत गुपाल
|
239
|
18.
|
अब मोहि मज्जत क्यौं न उबारौ
|
308
|
19.
|
अब मोहिं सरन राखियै नाथ
|
219
|
20.
|
अब वे विपदाहू न रहीं
|
130
|
21.
|
अब सिर परी ठगौरी देव
|
72
|
22.
|
अब हौं माया-हाथ बिकानौं
|
70
|
23.
|
अब हौं हरि, सरनागत आयौ
|
258
|
24.
|
अविगत-गति कछु कहत न आवै
|
3
|
26.
|
अविगत-गति जानी न परै
|
292
|
25.
|
अपुनपौ, आपुन ही बिसरयौ
|
337
|
26.
|
अपुनपौ आपुन ही मैं पायौ
|
334
|
27.
|
आछौ गात अकारथ गारयौ
|
190
|
28.
|
आजु हौ एक-एक करि टरिहौं
|
220
|
29.
|
इक कौं आनि ठेलत पाँच
|
301
|
30.
|
इत-उत देखत जनम गयौ
|
74
|
31.
|
इहाँ कपिल सौ माता कह्यौ
|
338
|
32.
|
इहिं बिधि कहा घटौगौ तेरौ
|
96
|
33
|
इहिं राजस को को न बिगोयौ
|
77
|
34
|
ऐसी कब करिहौ गोपाल
|
289
|
35
|
ऐसी को करी अरु भक्त कीजै
|
6
|
36
|
ऐसे और बहुत खल तारे
|
307
|
37
|
ऐसे प्रभु अनाथ के स्वामी
|
290
|
38
|
ऐसै करत अनेक जन्म गए
|
240
|
39
|
ऐसैहिं जनम बहुत बौरायौ
|
35
|
40
|
और न काहुहि जन की पीर
|
21
|
41
|
औसर हारयौ रे, तैं हारयौ
|
163
|
42
|
अंत के दिन कौ हैं घनस्याम
|
104
|
43
|
कब लगि फिरिहौं दीन बह्यौ
|
275
|
44
|
कवहूं तुम नाहिंन गहरु कियौ
|
295
|
45
|
करनी करुनासिंधु की, मुख कहत न आवै
|
5
|
46
|
करि मन नंद-नंदन ध्यान
|
368
|
47
|
करि हरि सौं सनेह मन साँचौ
|
111
|
48
|
करी गोपाल की सब होइ
|
325
|
49
|
कहत हे, आगै जपिहैं राम
|
82
|
50
|
कहा कमी जाके राम धनी
|
50
|
51
|
कहा गुन बरनौं स्याम, तिहारे
|
31
|
52
|
कहा लाइ तैं हरि सौं तोरी
|
127
|
53
|
कहावत ऐसे त्यागी दानि
|
221
|
54
|
का न कियौ जन-हित जदुराई
|
8
|
55
|
काया हरि कै काम न आई
|
120
|
56
|
काहू के कुल तन न बिचारत
|
16
|
57
|
काहु के बैर कहा सरै
|
42
|
58
|
किते दिन हरि-सुमिरन बिनु खोए
|
75
|
59
|
कीजै प्रभु अपने विरद की लाज
|
195
|
60
|
कृपा अब कीजिऐ बलि जाउँ
|
214
|
61
|
को को न तरयौ हरि-नाम लिएं
|
179
|
62
|
कौन गति करिहौ मेरी नाथ
|
210
|
63
|
कौन सुनै यह बात हमारी
|
273
|
64
|
क्यौं तू गोविंद नाम विसारौ
|
109
|
65
|
गरब गोबिंदहि भावत नाहीं
|
282
|
66
|
गाइ लेहु मेरे गोपालहिं
|
102
|
67
|
गोविंद गाढ़े दिन के मीत
|
39
|
68
|
गोविंद प्रीति सबनि की मानत
|
17
|
69
|
गोबिंद सौ पति पाइ
|
54
|
70
|
चकई री, चलि चरन-सरोवर
|
165
|
71
|
चरन-कमल बंदौ हरि राइ
|
1
|
72
|
चलि सखि, तिहि सरोवर जाहिं
|
166
|
73
|
चौपरि-जगत मड़े जुग बीते
|
85
|
74
|
जगपति नाम सुन्यौ हरि, तेरौ
|
309
|
75
|
जग मैं जीवत ही कौ नातौ
|
126
|
76
|
जन की और कौन पति राखै
|
19
|
77
|
जन के उपजत दुख किन काटत
|
194
|
78
|
जनम गँवायौ ऊआबाई
|
155
|
79
|
जनम-जनम-जब-जब, जिहि-जिहि
|
58
|
80
|
जनम तौं ऐसेहिं बीत गयौ
|
107
|
81
|
जनम तौ बादिहि गयौ सिराइ
|
241
|
82
|
जनम साहिवी करत गयौ
|
92
|
83
|
जनम सिरानौं अटकैं-अटकैं
|
117
|
84
|
जनम सिरानौई सौ लाग्यौ
|
101
|
85
|
जनम सिरानौ ऐसैं-ऐसैं
|
118
|
86
|
जन यह कैसे कहै गुसाई
|
300
|
87
|
जब जब दीननि कठिन परी
|
20
|
88
|
जब तैं रसना राम कह्यौ
|
178
|
89
|
जहां-जहां सुमिरे हरि जिहिं बिधि
|
9
|
90
|
जाकों दीनानाथ निवाजैं
|
47
|
91
|
जाकौ मनमोहन अंग करै
|
48
|
92
|
जाकौ मन लाग्यौ नँदलालहिं
|
56
|
93
|
जाकौ हरि अंगीकार कियौ
|
49
|
94
|
जा दिन मन पंछी उड़ि जैहै
|
114
|
95
|
जा दिन संत पाहुने आवत
|
329
|
96
|
जानिहौं अब वाने की बात
|
245
|
97
|
जापर दीनानाथ ढरै
|
45
|
98
|
जिन जिनही केसव उर गायौ
|
298
|
99
|
जिहिं तन हरि भजिबौ न कियौ
|
62
|
100
|
जे जन सरन भजे वनवारी
|
28
|
101
|
जैसे तुम गज कौ पाउं छुड़ायौ
|
25
|
102
|
जैसै राखहु तैसैं रहौं
|
274
|
103
|
जो घट अंतर हरि सुमिरै
|
110
|
104
|
जो सुख होत गुपालहि गाऐं
|
172
|
105
|
जौ अपनौ मन हरि सौं रांचै
|
366
|
106
|
जौ जग और बियौ कोउ पाऊँ
|
251
|
107
|
जौ तू राम-नाम-धन धरतौ
|
173
|
108
|
जो पै तुमहीं बिरद बिसारौ
|
243
|
109
|
जौ पै यहै बिचार परी
|
310
|
110
|
जौ प्रभु , मेरे दोष बिचारैं
|
265
|
111
|
जौ मन कबहुँक हरि कौं जाँचैं
|
57
|
112
|
जो लौं मन-कामना न छूटैं
|
357
|
113
|
जौ लौं सत सरूप नहिं सूझत
|
336
|
114
|
जौ हम भले बुरे तौ तेरे
|
280
|
115
|
जौ हरि-व्रत निज उर न धरैगौ
|
103
|
116
|
झूठे ही लगि जनम गँवायौ
|
125
|
117
|
ठकुरायत गिरिधर की सांची
|
23
|
118
|
तजौ मन, हरि बिमुखनि कौ संग
|
159
|
119
|
तब तैं गोबिंद क्यौं न सँभारे
|
161
|
120
|
तब विलंब नहिं कियौ
|
262
|
121
|
तातै जानि भजे बनवारी
|
37
|
122
|
तातै तुम्हरौ भरोसौ आवै
|
296
|
123
|
तातैं विपति-उधारन गायौ
|
288
|
124
|
तातैं सेइयै श्री जदुराई
|
328
|
125
|
ताहु सकुच सरन आए
|
263
|
126
|
तिहारे आगैं बहुत नच्यौ
|
284
|
127
|
तिहारौ कृष्न कहत कह जात
|
137
|
128
|
तुम कब मो सौं पतित उधारयौ
|
218
|
129
|
तुम तजि और कौन पै जाउँ
|
277
|
130
|
तुम प्रभु, मोसौं बहुत करी
|
203
|
131
|
तुम बिन भूलोइ भूलौ डोलत
|
287
|
132
|
तुम विनु साँकरै को काकौ
|
304
|
133
|
तुम हरि साँकरे कै साथी
|
303
|
134
|
तुम्हरी एक बड़ी ठकुराई
|
183
|
135
|
तुम्हरी कृपा गुपाल गुसाईं
|
201
|
136
|
तुम्हारी भक्ति हमारे प्रान
|
362
|
137
|
(गोपाल) तुम्हारी माया महाप्रबल
|
65
|
138
|
तुम्हरैं भजन सबहि सिंगार
|
53
|
139
|
तुम्हरौ नाम तजि प्रभु जगदीसर
|
215
|
140
|
तेऊ चाहत कृपा तुम्हारी
|
276
|
141
|
ते दिन बिसरि गए इहाँ आए
|
144
|
142
|
तेरौ तब तिहिं दिन, को हितू
|
105
|
143
|
तौ लगि बेगि हरौ किन पीर
|
291
|
144
|
थौरे जीवन भयौ तन भारौ
|
238
|
145
|
दिन दस लेहि गोबिंद गाइ
|
139
|
146
|
दिन द्वै लेहु गोविंद गाइ
|
140
|
147
|
दीन कौ दयाल सुन्यौ
|
306
|
148
|
दीन जन क्यौं करि आवै सरन
|
71
|
149
|
दीन-दयाल, पतित-पावन प्रभु
|
215
|
150
|
दीन-नाथ अब बारि तुम्हारी
|
206
|
151
|
देवहूति कह, भक्ति सो कहियै
|
340
|
152
|
देवहूति यह सुनि पुनि कह्यौ
|
348
|
153
|
द्वै मैं एकौ तौ न भई
|
123
|
154
|
धोखैं ही धोखैं डहकायौ
|
153
|
155
|
धोखैं ही धोखैं बहुत बह्यौ
|
154
|
156
|
नर तैं जनम पाइ कह कीनो
|
94
|
157
|
नर देही पाइ चित चरन-कमल दीजै
|
365
|
158
|
नहिं अस जनम बारंबार
|
116
|
159
|
नाथ अनाथनि ही के संगी
|
26
|
160
|
नाथ सकौ तौ मोहिं उधारौ
|
217
|
161
|
(श्री) नाथ सासंगधर कृपा करि
|
294
|
162
|
नीकैं गाइ गुपालहिं मन रे
|
363
|
163
|
नैननि निरखि स्याम-स्वरूप
|
335
|
164
|
पढ़ौ भाइ, राम-मुकुंद-मुरारि
|
171
|
165
|
पतितपावन जानि सरन आयो
|
293
|
166
|
(हरि) पतितपावन, दीन बँधु
|
264
|
167
|
पतित पावन हरि, बिरद तुम्हारौ
|
219
|
168
|
पहिलै हौं ही हो तब एक
|
333
|
169
|
प्रभु कौ दखौ एक सूभाइ
|
11
|
170
|
प्रभु जू, यौं कीन्हीं हम खेती
|
267
|
171
|
प्रभु जू, हौं तो महा अधर्मी
|
269
|
172
|
प्रभु, तुम दीन के दुख-हरन
|
253
|
173
|
प्रभु तेरौ बचन भरोसौ सांचो
|
41
|
174
|
प्रभु, मेरे गुन-अवगुन न बिचारौ
|
199
|
175
|
प्रभु मेरे, मोसौ पतित उधारौ
|
244
|
176
|
प्रभु मैं पीछौ लियौ तुम्हारौ
|
318
|
177
|
प्रभु हौं बड़ी बेर कौ ठाढ़ौ
|
223
|
178
|
प्रभु हौ सब पतितनि को टीकौ
|
224
|
179
|
प्रीतम जानि लेहु मन माही
|
108
|
180
|
फिरि फिरि ऐसोई है करत
|
78
|
181
|
बड़ी है राम नाम की ओट
|
169
|
182
|
बहुरि की कृपाहू कहा कृपाल
|
272
|
183
|
बासुदेव की बड़ी बढ़ाई
|
4
|
184
|
बिचारत ही लागे दिन जान
|
128
|
185
|
बिनती करत मरत हौ लाज
|
185
|
186
|
विनती सुनौ दीन की चित दै
|
63
|
187
|
बिरथा जनम लियौ संसार
|
119
|
188
|
बिरद मनौ वरियाइन छाँड़े
|
299
|
188
|
विषया जात हरष्यौ गात
|
332
|
189
|
बौरे मन, रहन, अटल करि जान्यौ
|
143
|
190
|
बौरे मन, समुझि-समुझि कछु चेत
|
146
|
200
|
बंदौ चरन-सरोज तिहारे
|
2
|
201
|
भक्तनि हित तुम कहा न कियौ
|
33
|
202
|
भ-क्तछल प्रभु, नाम तुम्हारौ
|
281
|
203
|
भक्त सकामी हुँ जो होइ
|
350
|
204
|
भक्ति कब करिहौ, जनम सिरानौ
|
156
|
205
|
भक्ति-पंथ कौं जो अनुसरै
|
358
|
206
|
भक्ति पंथ कौं जो अनुसरै
|
359
|
207
|
भक्ति बिना जौ कृपा न करते
|
254
|
208
|
भक्ति बिनु बैल विराने ह्वैहौ
|
158
|
209
|
भजन बिनु कूकर-सूकर जैसौ
|
60
|
210
|
भजन बिनु जीवत जैसैं प्रेत
|
61
|
211
|
भजहु न मेरे स्याम मुरारी
|
311
|
212
|
भजि मन नंद-नंदन-चरन
|
369
|
213
|
भरोसौ नाम कौ भारी
|
286
|
214
|
भवसागर मैं पैरि न लीन्हौ
|
285
|
215
|
भावी काहू सौं न टरै
|
327
|
216
|
भृंगी री भजि स्याम-कमल पद
|
167
|
217
|
मन तोसौं किती कही समुझाइ
|
141
|
218
|
मन, तोसौं कोटिक बार कही
|
148
|
219
|
मन-बच-क्रम मन, गोविंद सुधि करि
|
135
|
220
|
मन बस होत नाहिने मेरे
|
259
|
221
|
मन रे, माधब सौं करि प्रीति
|
149
|
222
|
महा प्रभु, तुम्हें बिरद की लाज
|
196
|
223
|
माधौ जू जौ जन तै बिगरै
|
204
|
224
|
माधौ जू, तुम कब जिय बिसरौ
|
242
|
225
|
माधौ जू, मन माया बस कीन्हौ
|
69
|
226
|
माधौ जू, मन सबही विधि पोच
|
191
|
227
|
माधौ जू, मन हठ कठिन परयौ
|
189
|
228
|
माधौ जू मोतै और न पापी
|
226
|
229
|
माधो जू, मोहि काहे की लाज
|
235
|
230
|
माधौ जू यह मेरी इक गाइ
|
81
|
231
|
मावौ जू, सो अपराधी हौ
|
236
|
232
|
माधौ जू, हों पतित-सिरोमनि
|
246
|
233
|
माधौ, नैंकु हटकौ गाइ
|
79
|
234
|
माया देखत ही जु गई
|
73
|
235
|
मेरी कौन गति ब्रजनाथ
|
212
|
236
|
मेरी तौ गति-पति तुम
|
279
|
237
|
मेरी बेर क्यौं रहे सोचि
|
249
|
238
|
मेरी सुधि लीजौ हो ब्रजराज
|
319
|
239
|
मेरे हृदय नाहिं आवत हो
|
317
|
240
|
मेरो मन अनत कहाँ सुख पावै
|
361
|
241
|
मेरौ मन मति-हीन गुसाई
|
193
|
242
|
मैं तौ अपनी कही बड़ाई
|
260
|
243
|
मो सम कौन कुटिल खल कामी
|
233
|
244
|
मौसौं पतित न और गुसाईं
|
232
|
245
|
मौसौं पतित न और गुसाईं
|
232
|
246
|
मोसौ पतित न और हरे
|
248
|
247
|
मोसौं बात सकुच तजि कहियै
|
222
|
248
|
मोहन के मुख ऊपर बारी
|
38
|
249
|
मोहिं प्रभु तुमसों होड़ परी
|
216
|
250
|
यह आसा पापिनी दहै
|
76
|
251
|
यहई मन आनंद-अवधि सब
|
97
|
252
|
यह सब मेरीयै आइ कुमति
|
124
|
253
|
रह्यौ मन सुमिरन कौ पछितायौ
|
95
|
254
|
राम न सुनिरयौं एक घरी
|
100
|
255
|
(मन) राम-नाम-सुमिरन बिनु
|
157
|
256
|
राम भक्तवत्सल निज वानौ
|
14
|
257
|
रे मन, अजहूं क्यौं न सम्हारै
|
90
|
258
|
रे मन, आपु कौं पहिचानि
|
99
|
259
|
रे मन, गोविंद के ह्यै रहियै
|
89
|
260
|
रे मन, छाँड़ि विषय कौ रँचिबो
|
84
|
261
|
रे मन, जग पर जानि ठगायौ
|
83
|
262
|
रे मन, जनम अकारथ खोइसि
|
160
|
263
|
रे मन, निपट निलज अनीति
|
145
|
264
|
रे मन मूरख, जनम गँवायौ
|
162
|
265
|
रे मन्, राम सौं करि हेत
|
134
|
266
|
रे मन, समुझि सोचि बिचारि
|
132
|
267
|
रे मन, सुमिरि हरि हरि हरि
|
131
|
268
|
रे सेठ, बिन गोविंद सुख नाहीं
|
123
|
269
|
सकल तजि, भजि मन चरन मुरारि
|
323
|
270
|
सब तजि भजिऐ नंद कुमार
|
364
|
271
|
सबनि सनेहौ छाँड़ि दयौ
|
122
|
272
|
सरन आए को प्रभु, लाज धरिऐ
|
198
|
273
|
सरन गए को को न उबारयौ
|
18
|
274
|
सबै दिन एकै से नहिं जात
|
330
|
275
|
सबै दिन गए विषय के हेत
|
121
|
276
|
सुवा, चलि ता बन कौ रस पीजै
|
168
|
277
|
सोइ कछु कीजै दीन-दयाल
|
213
|
278
|
सोइ भलौ जो रामहि गावै
|
170
|
279
|
सोइ रसना, जो हरि-गुन गावै
|
177
|
280
|
सो कहा जु मैं न कियौ
|
208
|
281
|
संतनि की संगति नित करै
|
344
|
282
|
स्याम गरीबनि हूं के ग्राहक
|
24
|
283
|
स्याम-बलराम कौं सदा गाऊँ
|
367
|
284
|
स्याम भजन-बिनु कौन बड़ाई
|
30
|
285
|
हमारी तुमकौं लाज हरी
|
266
|
286
|
हमारे निर्धन के धन राम
|
182
|
287
|
हमारे प्रभु, औगुन चित न धरौ
|
320
|
288
|
हरि की सरन महँ तू आउ
|
138
|
289
|
हरि के जन की अति ठकुराई
|
51
|
290
|
हरि के जन सब तैं अधिकारी
|
43
|
291
|
हरि जू की आरती बनी
|
370
|
292
|
हरि जू तुम तै कहा न होइ
|
184
|
292
|
हुरि जू, मोसौ पतित न आन
|
247
|
293
|
हरि जू, हौं यातैं दुख-पात्र
|
316
|
294
|
हरि, तुव माया को न विगोयौ
|
64
|
295
|
हरि तैरौ भजन कियौ न जाइ
|
68
|
296
|
हरि तै बिमुख होइ नर जोइ
|
352
|
297
|
हरि बिनु अपनौ को संसार
|
112
|
298
|
हरि बिनु कोऊ काम न आयौ
|
322
|
299
|
हरि बिनु मीत नहीं कीउ तेरे
|
113
|
300
|
हरि-रस तौअब जाइ कहुँ लहियै
|
356
|
301
|
हरि सौं ठाकुर और न जन कौं
|
12
|
302
|
हरि सौं मीत न देख्यौ कोई
|
13
|
303
|
हरि हरि हरि सुमिरौ सब कोइ
|
175
|
304
|
हरि, हौं महा अधम संसारी
|
282
|
305
|
हरि हौं महापतित, अभिमानी
|
234
|
306
|
हरि, हौं सब पतितनि कौ नायक
|
231
|
307
|
हरि हौ सब पतितनि कौ राउ
|
230
|
308
|
हरि, हौं सब पतितनि कौ राजा
|
229
|
309
|
हरि, हौं सब पतितनि-पतितेस
|
227
|
310
|
हारी जानि परी हरि मेरी
|
312
|
311
|
ह्रदय की कबहुँ न जरनि घटी
|
186
|
312
|
है हरि नाम कौ आधार
|
174
|
313
|
है हरि-भजन कौ परमान
|
29
|
314
|
होउ मन, राम-नाम कौ गाहक
|
133
|
315
|
होत सो जो रघुनाथ ठटै
|
326
|
316
|
हो तौ पतित-सिरोमनि माधौ
|
225
|