सूर विनय पत्रिका
अनुवादक - सुदर्शन सिंह
राग बिलावल
(प्रभो!) यह सेवक जन्म-जन्म में, जब-जब, जिस-जिस युग जहाँ-जहाँ जन्म ले, वहाँ-वहाँ श्रीहरि के चरण-कमलों में प्रेम सुदृढ़ बना रहे। जैसे हिरन उत्तम संगीत सुनने को उत्सुक रहता है, वैसे ही मेरे कान आपका सुयश सुनने को उत्सुक रहें। जैसे चातक पिउ-पिउ की रट लगाये रहता है, मेरे मुख से उसी प्रकार आपके नाम का उच्चारण होता रहे। जैसे चकोर चन्द्रमा के दर्शन को उत्कण्ठित रहता है, मेरे नेत्र उसी प्रकार आपके दर्शन को उत्कण्ठित रहें। हाथ (आपके श्रीविग्रह की) सुन्दर पूजा-अर्चा में लगे रहें। बुद्धि सुन्दर (निर्मल) बनी रहे और वह श्रद्धापूर्वक आपके स्वरूप का चिन्तन करे, हृदय-कमल में आपका प्रेम रहे। उस पर भौंरे के समान (आपके यशोगान की) मनोहर गूँज होती रहे, जिससे प्रेम-पराग उड़ता रहे (यशोगान करते हुए सदा प्रेममग्न रहा करूँ)। और भी पुण्य कर्म बदले में कोई भी फल पाने की इच्छा के बिना, प्रेमपूर्वक केवल श्रीपति प्रभु के लिये ही हों। सूरदास जी कहते हैं- जिसका भजन में विश्वास है, उसके लिये स्वर्ग और नरक, दुःख और सुख (समान हैं)। |
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