विषय सूचीरासपञ्चाध्यायी -स्वामी अखण्डानन्द सरस्वतीरासलीला का अन्तरंग-3ईमानदारी की बात यह है कि यदि भगवान को धन समझकर कोई पाना चाहे कि सबसे बड़ा धन वही है तो लोभ से भगवान की प्राप्ति होगी; और कोई यह समझे कि भगवान का भजन ही सबसे बड़ा धर्म है, और भगवान को धर्मपूर्ति समझकर उनका भजन करे तो उस धर्म से भी भगवा की प्राप्ति होगी। बन्धन और मोक्ष दोनों परमात्मा के स्वरूप में कल्पित हैं। व्यतिरेक दृष्टि से कल्पित हैं तो चारों ओर कल्पित हैं, और अन्वय दृष्टि से चारों परमात्मा हैं। एक दृष्टि से देखो तो चारों परमात्मा हैं, और दूसरी दृष्टि से देखो तो चारों परमात्मा नहीं हैं। जिज्ञासु के लिए चारों से विलक्षण परमात्मा है, और सिद्ध के लिए चारों परमात्मा हैं। यह वेदान्त की बात उस महात्मा ने ज्ञानी पुरु को सुनायी। उस साँवरे मुखारविन्द के दर्शन में जिस पर मञ्जु-मञ्जु वंशी गुञ्जार करती है, जो काम है, वह काम नहीं, अनिर्वचनीय प्रेम है। वह केवल गोपियों के हृदय में प्रकट होता है। कहने का अभिप्राय यह कि ईश्वरविषयक काम संसार से छुड़ाने वाला होता है और जो अपने हृदय में विद्यमान काम का ईश्वर के प्रति उपयोग, सदुपयोग नहीं करता, वह कभी काम से छूट भी नहीं सकता। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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