विषय सूचीरासपञ्चाध्यायी -स्वामी अखण्डानन्द सरस्वतीरास-स्थली की शोभाहिमाचल की बेटी हैं- पार्वतीजी और गंगाजी उनकी बहन हैं; और जिस शिखर से गंगाजी निकलती हैं उसको ‘हिम’ ही बोलते हैं, हिमाचल बोलते हैं। गंगोत्री के ऊपर, गोमुख के ऊपर जो हिमका ग्लेशियर है उस हिमसे गंगाजी का प्रवाह है। और यमुनाजी क्यों कलिन्दनन्दिनी हैं? तो जैसे- पहाड़ की गुफा में से कोई धारा निकले वैसे कलिन्द नाम के पर्वत की गुफा में से यमुनाजी निकली हैं और गंगाजी जो हैं न, वह बड़ा भारी ग्लेशियर है, जैसे समुद्र होता है ऐसे गलता-सा बरफ ही बरफ, वहाँ से गंगाजी का प्रवाह निकलता है। गंगाजी चढ़ती हैं- वह तो महाराज! शंकरजी के शिर पर चढ़ गयीं। और ये यमुनाजी महाराज निकलीं कलिन्द पर्वत से और निकलीं तो सीधे आयीं व्रज की ओर। गंगाजी व्रज को बचाकर आयीं अगर व्रज में जाती तो बहुत मजा आ जाता। वे व्रज को बचाकर काशी चलीं। गंगाजी का प्रवाह काशी के लिए है। गंगाजी के मन में शंका हुई काशी के पास पहुँचते-पहुँचते, कि मैं तो विष्णुपद की पुत्री हूँ, विष्णुपद से निकली हूँ और शंकरजी पर एक बार चढ़ चुकी हूँ तो दोबारा जाकर शंकरजी का स्पर्श कैसे करूँ? तो भगवान ने कृपा करके चुनार में अपना पाँव फिर रख दिया, गंगाजी ने फिर उनके पद को धोया और वहाँ से दुबारा निकलीं। माने फिर विष्णुपदी हो गयीं। और फिर काशी में जाकर शंकरजी पर चढ़ीं और ये यमुनाजी, कालिन्दी, कलिन्द पर्वत से निकलकर सोचने लगीं कि व्रज में कैसे जायँ, द्वारका में कैसे जायँ? ये पटरानी है भगवान की। द्वारका में चतुर्थ-पटरानी हैं भगवान की कालिन्दी; ये ही हैं यमुनाजी। एक रूप वहाँ है और एक रूप व्रज में है। व्रज में श्रीकृष्ण रास करते हैं, लीला करते हैं। ये यमुनाजी आधिदैविक दृष्टि से सूर्यपुत्री हैं, और आधिभौतिक दृष्टि से कलिन्द पर्वत से निकली हैं; कलिन्दनदिनी हैं। तो ये भी सूर्य में विराजमान जो नारायण हैं उन्हीं की पुत्री हुईं और गंगाजी भी नारायण की पुत्री हैं। तो ये जो यमुनाजी हैं, व्रज में आकर बहीं, तो ‘नदति इति नदी’ कृष्ण-कृष्ण-कृष्ण यमुनाजी बोलती हैं। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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