विषय सूचीरासपञ्चाध्यायी -स्वामी अखण्डानन्द सरस्वतीगोपियों का श्रीकृष्ण को पूर्वरमण की याद दिलानावेदान्ती लोग कहते हैं कि तृण से लेकर ब्रह्मलोक तक से वैराग्य करो, एक कण से लेकर प्रकृति तक वैराग्य करो। तो यह अलौकिक विषयक कामना जो आयी चित्त में इसने क्या किया कि दुनिया के लोगों को, वस्तुओं को, संसार के विषयभोग को तुच्छ बना दिया। अरे, इसकी ओर तो हम आँख उठाकर देखना नहीं चाहते। यह जो भगवत् प्रेम का आनन्द है वह देखने लायक है। तो गोपी ने कहा- महाराज, हमारे हृदय में जो कामाग्नि पैदा हो गयी है यही हमारी तकलीफ है। कृष्ण बोले- अरी गोपियों, भला यह रोग तुम कहाँ से ले आयी? किसको देखकर आया यह रोग? है कोई गाँव में ऐसा, यदि कहीं हो तो हम कान पकड़कर ले आवें उसको क्या हमारे दादा को देखकर मन में आग जली है? हम कहो तो बुलाकर ले आवें दाऊ-दादा को। गोपियों ने कहा- नहीं, तुम्हारी मुस्कान ने, तुम्हारी चितवन ने यह आग लगायी है; और तुम्हारी बाँसुरी ने फूँककर इस आग को प्रज्वलित कर दिया है। हासावलोककलगीत-जहृच्छयाग्निम्। अच्छा बाबा, इसकी कोई दवा हो तो बताओ। आग की दवा तो पानी है। कहो तो ले आवें यमुनाजल। गोपी ने कहा- सिञ्चांग नस्त्वदधरामृतपूरकेण यह अग्नि यमुनाजल से नहीं बुझेगी, वह तो तुम्हारे अधरामृत की बाढ़ से ही बुझेगी। ‘पूर’ माने बाढ़ और ‘क’ माने जल। श्रीवल्लभाचार्य जी महाराज ने ‘क’ का अर्थ जल किया। तो अधरामृतपूरकेणका अर्थ हुआ कि एक क्षण के लिए अधरामृत नहीं, अधरामृत पर अधरामृत, अधरामृत। उसकी बाढ़ आ जाय। उससे हम लोगों की अग्नि शान्त होगी। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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