विषय सूचीरासपञ्चाध्यायी -स्वामी अखण्डानन्द सरस्वतीगोपियों का श्रीकृष्ण को पूर्वरमण की याद दिलानाअपने अन्दर जो चीज है वही आध्यात्मिक है- आराम की होवे तो और तकलीफ होवे तो। दुःख भी आध्यात्मिक है। आप जानते हैं कि तीन तरह के ताप होते- आध्यात्मिक, आधिदैवक, आधिभौतिक और सुख भी आध्यात्मिक होते हैं। तो ये जो भावाग्नि है, कामाग्नि है, वह आध्यात्मिक है। माने मन के भीतर ये होती हैं। तो ये दो तरह की होती है- लौकिक वस्तु-विषयक और अलौकिक वस्तु-विषयकामन हुआ रोटी-वोटी खा ली, भूख की ज्वाला शान्त हो गयी। किसी को पैसे के लिए मन में आग जल रही थी, पैसा मिल गया शान्त हो गयी। स्त्री-पुरुष चाहते थे, मिल गये, शान्त हो गयी काम की आग। तो यह लौकिक वस्तु की प्राप्ति के लिए जो आग होती है वह छोटी चीज के लिए होती है। भक् से जलती है और बुझ जाती है; फिर जलती है फिर बुझ जाती है। यह बारूद की आग की तरह चिनगारी उठती रहती हैं, और बुझती रहती हैं, लेकिन अलौकिक वस्तु के लिए, ईश्वर के लिए, श्रीकृष्ण के लिए जब कामाग्नि उदय होती है तब काम की आग तो सबके जलती हैं पर कोई विषय से भोग चाहता है, तो कोई ईश्वर से। कोई चाहता है कि अपनी यह प्यास क्षीरसागर के दूध से ही मिटायेंगे, भेंड़-बकरी के दूध से नहीं; कोई सोचता है कि अरे बाबा, चाहे गड्ढे का पानी मिले, हमको तो प्यास बुझाने से मतलब है। लेकिन जिसके चित्त में अलौकिकविषयक अग्नि का उदय हो जाय; अलौकिक विषयक अग्नि का उदय हो जाय; अलौकिक काम का उदय हो जाय, तो वह कहेगा कि हम अपनी वासना पूरी करेंगे पर श्रीकृष्ण से करेंगे, भगवान् से करेंगे। अब यह तो जो काम है उसमें कामना तो वही है- धन के लिए होय तो लोभ और कुटुम्ब के लिए हो तो मोह, दुश्मन के लिए हो तो क्रोध और स्त्री-पुरुष के लिए हो तो काम- पर ईश्वर के लिए हो, तो प्रेम। उसी का नाम भक्ति। चिज बिलकुल वही। भक्ति माने कोई अलौकिक दृष्टि का नाम भक्ति नहीं है, अलौकिक विषयक सामान्य दृष्टि का नाम भक्ति है। यह जो अलौकिक विषयक काम होता है उसका फल लौकिक विषय की प्राप्ति के फल से भिन्न होता है। लौकिक विषय की प्राप्ति से काम नहीं मिटता। इसका फल क्या निकला? |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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