विषय सूचीरासपञ्चाध्यायी -स्वामी अखण्डानन्द सरस्वतीश्रीकृष्ण में रति ही बुद्धिमानी हैअरे, तुम दाढ़ी-मूँछ होने से नहीं समझना कि तुम मर्द हो; जिसको विषय-वासना के कारण नीचे आना पड़ता है, उसमें क्या पुरुषत्व है? तो जब तुम्हें भोग्य ही बनना है तो ईश्वर के भोग्य बनो न। इससे क्या होगा कि संसार में जितने दुःख हैं उनसे बच जाओगे, जन्म से बच जाओगे, संयोग, वियोग, मृत्यु, सबसे बच जाओगे। अरे, क्या इंद्रियों का भोग ही सब कुछ है? सीताराम कहो। देख लिया हजारों भोग भोगकर संसार में। भोग का अंतिम रूप ग्लानि है, ग्लानि के सिवाय और कुछ नहीं है। देखो, ईश्वर का प्रेम कैसा है? जैसे राष्ट्र से प्रेम करते हैं तो भाई-भतीजे का पक्षपात छूट जाता है, और विश्व से प्रेम करते हैं तो राष्ट्रीयता का मोह छूट जाता है, जब ब्रह्माण्ड से प्रेम करते तो धरती का मोह छूट जाता है, और जब अनन्तों ब्रह्माण्ड के अधिष्ठान ईश्वर से प्रेम करते हैं तो ब्रह्माण्ड का व्यामोह छूट जाता है। होने दो सृष्टि, होने दो प्रलय! तो बुद्धिमानी इसमें है कि आप खोटे सिक्के में ना फँसे। हमने सुना, झूठ कि सच यह नहीं मालूम। सुना कि बम्बई में एक सौदा हुआ, नम्बर दो का सौदा था, रकम बीस लाख थी। जब बीस लाख रूपया आया तो आते ही उसे रख दिया गया, बण्डल-बण्डल देख लिए गये। सौदा हो गया, माल बिक गया, उस पर दूसरे का कब्जा हो गया। जब बण्डल निकाले गये तो उसमें चौदह लाख नकली नोट थे। तो बुद्धिमानी की बात यह है कि नकली में न फँसे। बुद्धिमानी की दूसरी बात यह है कि दुःख अपने घर में ना आने दें। मान लो कि एक मेहमान अपने घर में ऐसा आ गया जिसको हम नहीं चाहते; तो अब तुमको ऐसी अक्ल चाहिए कि उस मेहमान को खिलाकर-पिलाकर कैसे भी चलता कर दें। मेहमान आ गया तो आ गया लेकिन अपने दिल में मेहमान न बनावें; उसमें हम स्वतंत्र हैं। कोई बुद्धिमान् कितना भी होवे लेकिन यदि दिन भर रोवे, दुःखी हो, तो वह बुद्धिमान नहीं है। तुम्हारी बुद्धि किस काम आयी, अगर तुम धोखे से नहीं बचे, नकली से नहीं बचे, मरने वाले से नहीं बचे। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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