विषय सूचीरासपञ्चाध्यायी -स्वामी अखण्डानन्द सरस्वतीश्रीकृष्ण में रति ही बुद्धिमानी हैलेकिन- ‘अस्त्वेवमेतदुपदेशपदे त्वयीशे’ हमारे रोम-रोम के स्वामी हो तुम हमारे प्राणनाथ हो तुम, इसलिए तुम हमारी बुद्धि के संचालक हो, हमारे प्रेष्ठ आत्मा हो। अब हमारे पास धर्म की क्या चर्चा? मेढ़-मर्यादा तो वहाँ बनती है जहाँ खेत के या घर के मालिक दो होते हैं। हम तो बाबा, सब दीवार तोड़कर, सारी मर्यादा छोड़कर तुम्हारे साथ मिल गयीं, अब हमारे लिए धर्म का प्रश्न कहाँ है? प्रेष्ठो भवांस्तनुभृतां किल बन्धुरात्मा- संपूर्ण जगत् के प्राणियों के परम प्रियतम, बन्धुरात्मा-बन्धु और आत्मा तुम ही हो। बन्धुरात्मा में दो जने हुए- बन्धु और आत्मा। परंतु यदि एक करना हो तो- ‘बन्धुरात्मा = बन्धुः आत्मा शरीरं मनोगात् च यस्य-बन्धु माने सुन्दर है आत्मा अर्थात् शरीर जिसका, माने श्रीकृष्ण। गोपी कहती हैं कि तुम्हारा तो तन भी सुन्दर है, मन भी सुन्दर है। हम जानती हैं। तुम्हारा हृदय हमारे प्रति प्रेम से भरा है और हम तुम्हारे प्रेम में अपने-आपको दे चुकी हैं, अब ये बीच में कोई मेढ़-मर्यादा क्यों, चहारदीवारी क्यों? देखो, संसारर में सबसे बड़ा बुद्धिमान कौन है? सब अपने आपको बुद्धिमान् ही समझते हैं। अपनी अकल और दूसरे का धन सब लोग ज्यादा समझते हैं। परंतु असल में वही पुरुष बुद्धिमान है जिसकी रति संसार में न होकर श्रीकृष्ण में, परमेश्वर में रति हो जावे। यह गोपियों का मत है। हम एक पुरुष से प्रेम करके पैसा पा सकते हैं, इज्जत पा सकते हैं, अपनी तारीफ सुन सकते हैं; मीठी आवाज सुन सकते हैं, उसका स्पर्श पा सकते हैं, उसका रूप देख सकते हैं, उसका ग्रहण त्याग सब कर सकते हैं। उसको अपने भोग का साधन बना सकते हैं। पूरा हो गया तुम्हारा अधिकार। परंतु संसार में इंद्रियों के भोग्य विषय ही समाप्त हो जाते हैं और ईश्वर से जो प्रेम होता है वह इंद्रियों को भोग-वासना से छुड़ाने के लिए होता है। जो राग है, द्वेष है, मोह है, बन्धन है, दुःख है, जो संसार के विषय- भोग में लगा ही रहता है, इस दुःख को सर्वात्मा मिटाने के लिए ईश्वर से प्रेम है। ईश्वर कभी मरेगा नहीं। अगर तुम ईश्वर के साथ ब्याह कर लो तो तुमको विधवापन का दुःख कभी नहीं होगा। अगर तुम ईश्वर के साथ ब्याह कर लो तो तुमको विधवापन का दुःख कभी नहीं ह गा। कहो कि यह स्त्रियों के लिए तो ठीक है, परंतु पुरुषों के लिए? |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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