विषय सूचीरासपञ्चाध्यायी -स्वामी अखण्डानन्द सरस्वतीश्रीकृष्ण में रति ही बुद्धिमानी हैवह सबकी गुलामी से बच गया और सबके कर्ज से बच गया। क्योंकि वह तो राजा के पास शरण में पहुँच गया। उसका अपना खास आदमी हो गया। पहले राजा लोग ऐसा करते थे कि कोई शरण में आ जाय तो उसकी ओर से राजा लोग शरणागत को भय देने वाले से लड़ जाते थे। आपने सुना होगा अर्जुन ने एक को मारने की प्रतिज्ञा कर दी थी, और सुभद्रा ने उसको बचाने की प्रतिज्ञा कर दी थी, और फिर तो श्रीकृष्ण अर्जुन की ओर से लड़े परंतु सुभद्रा ने कहा कि कृष्ण से युद्ध करके भी शरणागत की रक्षा करेंगे। सुभद्रा शरणागत की रक्षा करने के लिए श्रीकृष्ण से लड़ गयी। तो पहले शरणागत-वात्सल्य को बड़ा भारी गुण मानते थे। ये गोपियाँ धर्म छोड़कर अधर्म में नही गयी हैं, धर्म छोड़कर परम-धर्म में गयी हैं। वे पति को छोड़कर किसी पराये आदमी के पास नहीं गयी हैं, परमेश्वर के पास गयी हैं, यह बात ध्यान में रखनी चाहिए। इसलिए गोपियों पर कलंक तो लगाया ही नहीं जा सकता। बोलीं- अब हमको धर्म का उपदेश करना, माने नीचे की बात का उपदेश करना ठीक नहीं है। मैं पहले-पहल दिन स्कूल में पढ़ने के लिए गया तो हमारे अध्यापक ने एक लकड़ी पर खड़िया से लिखा क, ख, ग, घ। बोले- इसको लिखकर ले आओ। उन्होंने तो क, ख, ग, घ लिखा था, लेकिन मैंने वे अक्षर तो लिखे ही और भी लिखे। य, र, ल, व, ह तक लिखकर ले गया उनके पास। बोले- अच्छा मालूम हो गया कि तुमने आगे पढ़ा है। अच्छा और बताओ तुमने कहाँ तक पढ़ा है? तब मैंने उनको बताया कि हमको श्लोक पढ़ना भी आता है, हमें चौपाई पढ़ना भी आता है। बोले- ठीक है, अब उसके आगे पढ़ायेंगे। यदि वे कहते कि क, ख, ग, घ, च, छ, ज, झ फिर लिखो तो हमारे पढ़े हुए को ही तो पढ़ाते, पिसे हुए को पीसना पड़ता है, चबाये हुए को चबाना पड़ता, ‘रिवीजन’ होता। तो यदि गोपियों को यह कहा जाय कि तुम घर जाकर वही धर्म पालन करो, तो उनके लिए तो यह पिष्टपषण ही होता। वे तो इस धर्म से ऊपर उठ चुकी हैं। इसलिए उन्होंने कहा-अरे धर्मशास्त्री जी, आपने धर्म के अनुसार बिल्कुल ठीक कहा। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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