विषय सूचीरासपञ्चाध्यायी -स्वामी अखण्डानन्द सरस्वतीगोपियों का समर्पण-पक्ष‘देवो यथाऽऽदिपुरुषो भजते मुमुक्षून्’ देव तो खिलाड़ी हैं, वे अनेक रूप धारण करके विहार करते हैं, तुम भी हमारे साथ विहार करो। इसमें आकार का श्लेष करके भजते मुमुक्षून् ऐसा अर्थ भी कोई-कोई निकालते हैं। वे कहते हैं कि मोक्ष चाहने वालों की सेवा नारायण नहीं करते हैं। क्यों? बोले-संसाररूपी जेल के दरवाजे पर नारायण भगवान् बादशाह खड़े हो गये; जेल में से कैदी निकलने लगे; बोले- क्या चाहते हो? बोले- महाराज छुट्टी चाहते हैं, जेल में से निकल जाना चाहते हें। तो कहा- जाओ, खुला है दरवाजा, जिसको-जिसको हमारा दर्शन हो जाय सो निकलते जाओ, जेलखाने से छुट्टी। नारायण, उनको वैकुण्ठ में थोड़े ही रखते हैं जो मोक्ष चाहते हैं, माने जो जेलखाने से छूटना चाहते हैं। मुक्ति माने छुटकारा। जो लोग संसार के कैदखाने में कैद किए गये हैं वे नारायण का भजन करें, तो नारायण उनका भजन नहीं करते, कहते हैं जाओ छुट्टी, जाओ मुक्त हो गये, तुम ब्रह्म हो गये, निर्गुण, निर्विकार, एकरस, निर्धर्मक हो गये। खड़े होकर नारायण फाटक पर बोलते हैं तत्त्वमसि, तत्त्वमसि। जितने-जितने कैदी निकलते हैं सबको बोलते हैं नारायण तत्त्वमसि, तत्त्वमसि तू ब्रह्म है, जाओ मुक्त हो गये। अब एक ने कहा, महाराज, जेलखाने से तो मैं निकल आया, लेकिन हमको मोक्ष वोक्ष तो चाहिए नहीं। हम तो चाहते हैं महाराज कि आपके साथ-साथ महल में चलें, और आपका पाँव धोयें अपने हाथ से, और आपके कपड़े धोवें, और अपने हाथ से आपकी रोटी बनावें, आपके बाल सँवार दें, आपको चंदन लगा दें, आपको पंखा झलें, आपके मुँह में पान की बीड़ी हम अपने हाथ से डालें। बोलें- ख़िलाफ़ हैं। फिर क्या करें? अब नारायण भगवान् पड़े चक्कर में। ‘ता ते जे हरि भगति सयाने। मुकुति निरादरि भगति लोभाने ।।’ नारायण बोले- अच्छा भाई, तो फिर चलो हमारे साथ वैकुण्ठ में। वृन्दावन में हमारे कोकिल साँई थे, वे कहते थे कि एक दिन भाव में माली की लड़की बनकर, डलिया म फूलमाला लेकर, पहुँच गया भगवान् के दरबार में। तो महाराज रामचंद्र बहुत नाराज हुए कि यहाँ माली की लड़की बिना आज्ञा के कैसे घुस आयी हैं? |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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