विषय सूचीरासपञ्चाध्यायी -स्वामी अखण्डानन्द सरस्वतीरास की भूमिका एवं रास का संकल्प-भगवानपि०तो आओ लीला प्रारम्भ कर देते हैं- भगवानपि ता रात्री शरदोत्फुल्लमल्लिका: ।
भगवान माने बहुत मीठे। भगवान शब्द का अर्थ है मीठा। गुलाबजामुन, रसगुल्ला जैसा मीठा नहीं। यह महापुरुष होने पर भी, पुरुषोत्तम होने पर भी, दूर से देखने में लगे कि कोई लड़की हैं। अब आपको इस शब्द से यह अर्थ न निकलता हो तो हमें खोलकर बताना होगा। भगवान शब्द का अर्थ ही यह है कि हो लड़का और दिखे लड़की। संस्कृत का ‘भग’ शब्द आपको मालूम हो तो इसका अर्थ ठीक-ठीक समझ जाएंगे। भग क्या है? जो इनकी मीठी आवाज सुन ले वह इन पर लट्टू’; जो इनको देखे तो सो लट्टू, जो लख ले सो लट्टू; जो सूँघ ले सो लट्टू- ‘पिबन्त्य इन चक्षुर्भ्यां लिहन्त्य इव जिह्वय’ यह वर्णन आया है। आँखों से कृष्ण को पीती हैं; ‘पिवन्त्य इव चक्षुभर्यां लिहन्त्य इव जिह्या’- माने यह कृष्ण बहुत मीठा है, माधुर्य सारसर्वस्व है। ‘भगवानपि’- भगवान होने पर भी ‘रन्तुं मनश्चक्रे’- उसके मन में विहार का संकल्प उदय हुआ। ‘भगवानपि’ यह वैसे ही हैं जैसे गीता में-
‘अजोऽपि सन् अव्ययात्मा’ और ‘अजोऽपि सन् सम्भवामि’- मैं अजन्मा होकर भी जन्म लेता हूँ। और यहाँ है कि भगवान होकर भी विहार का संकल्प लेता हूँ। दोनों को मिलाओ तो जैसे अजन्मा का जन्म सम्भावित है इसी प्रकार भगवान में विहार का संकल्प यद्यपि असम्भावित है तथापि भक्तवात्सल्य- ‘मुख्यं तु तस्य कारुण्यम्’ के कारण सम्भावत है। कहा- नहीं- भाई! राधिका के प्रेम का इतना प्रबल आकर्षण है कि- ‘भगवानपि रन्तुं मनश्चके’ उनकी भगवत्ता में कोई व्यवधान नहीं होता है लेकिन राधिका के प्रेम ने खींच लिया। आराधिका राधिका हैं न! बोले- भगवान का डर तो लगता नहीं कि ब्रह्म के सिवाय और कुछ हो जाएंगे। भगवान प्रेम परवश हो जाते हैं। इसमें फर्क क्या है? जो सोचता है कि यदि हम प्रेम-परवश हो जाएंगे तो हमारे ब्रह्मत्व की हानि हो जाएगी, वह तो अपने को बचाकर रखेगा। वह अपने को सम्हालेगा कि कहीं हम जीव न हो जाएं। ये नकली ब्रह्म जितने होते हैं उनको जीव होने का डर लगा रहता है। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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