विषय सूचीरासपञ्चाध्यायी -स्वामी अखण्डानन्द सरस्वतीभगवानपि०-रास की भूमिका एवं रास का संकल्पयह रासलीला का सिद्धांत है। तो-
विष्णु पुराण में यह प्रसंग आया कि भगवान अपनी किशोर अवस्था को सफल बनाने के लिए गोपियों के साथ क्रीड़ा करते हैं। अगर गोपियों के साथ क्रीड़ा न करें तो किशोर होना निष्फल। किशोर क्यों हुए? माँ को खुश करने के लिए किशोर हुए? कहा- नहीं। उनका दूध पीते थे। ग्वालों को खुश करने के लिए हुए? कहा नहीं। उनके साथ तो कुमार होकर घर-घर खेलते थे। तब किशोर क्यों हुए? गोपियों के लिए हुए। गोपियों के साथ जो भगवान की लीला है, वही उनके कैशोर को सफल करने के लिए है-
हरिवंश में यह प्रसंग आया है कि भगवान गोपियों के साथ जो क्रीड़ा करते हैं, वह ध्यान की लीला है, वह ज्ञान की लीला नहीं है। ज्ञान की लीला जो होती है वह संस्कार का अपवाद करके होती है। प्रियता बनेगी तब ध्यान होगा और और संस्कार का अपवाद होगा तब ज्ञान बनेगा। लक्ष्य से इतर का अपवाद करने पर लक्ष्य का ज्ञान होगा और ध्येय की प्राप्ति की दृढ़ वासना होने पर ध्यान होगा। यह रासलीला का प्रसंग है, वह भक्तजनों के ध्यान करने के लिए हैं; इसमें राजनीति की कोई बात नहीं है, इसमें समाज- सेवा की भी कोई बात नहीं है। वह बात हम निकालकर बता दें, यह बात दूसरी है। वह तो हम बता देंगे कि इसमें यह राजनीति है, इसमें यह समाज सेवा है, इसमें यह वेदान्त है। परंतु यह असली लीला जो है वह संसार में भटकते हुए चित्त को समसत्ताक होकर उसका आकर्षण करने के लिए है। समसत्ताक होकर माने जिस सत्ता में हमारा चित्त भटक रहा है उस सत्ता में आकर भगवान की लीला हमारे चित्त को आकृष्ट करती है। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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