विषय सूचीरासपञ्चाध्यायी -स्वामी अखण्डानन्द सरस्वतीगोपी के प्रेम की परीक्षा-धर्म का प्रलोभनभाई कहें कि भाभी घर में आ गयी जैसे हमारे घर में दूसरी माँ आ गयी, ऐसा उसको अनुभव हो रहा है। तो ये स्त्री के धर्म के अंतर्गत हैं-भर्तुः शुश्रूषणं स्त्रीणां परो धर्मो ह्यमायया । श्रीकृष्ण ने कहा- तुम कल्याण-सन्तान का पालन करना, पति के भाई बन्धुओं को सुखी रखना, पति से किसी प्रकार का कपट मत रखना- और उसकी सेवा करना। यह स्त्री का धर्म है। तब भी गोपियों के मन में रुचि नही हुई पति-सेवा के लिए। तो भगवान् ने कहा- अरे! तुम्हारे पतियों में कोई दोष है क्या? मारते-पीटते होंगे मालूम पड़ता है- दुःशीलो दुर्भगो वृद्धो- एक की ओर देखकर कहा- अहो, तुम्हारा पति तुमको मारता है, समझ गया। दूसरी की ओर देखकर कहा- ब्रह्महा च सुरापायी स्तेयी च गुरुतल्पगः । तो स्त्री ऐसी स्थिति में क्या करें? |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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