रासपंचाध्यायी -अखण्डानन्द सरस्वती पृ. 233

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रासपञ्चाध्यायी -स्वामी अखण्डानन्द सरस्वती

गोपी के प्रेम की परीक्षा-धर्म का प्रलोभन

भाई कहें कि भाभी घर में आ गयी जैसे हमारे घर में दूसरी माँ आ गयी, ऐसा उसको अनुभव हो रहा है। तो ये स्त्री के धर्म के अंतर्गत हैं-

भर्तुः शुश्रूषणं स्त्रीणां परो धर्मो ह्यमायया ।
तद् बन्धूनां च कल्याण्यः प्रजानां चानुपोषणम् ।।

श्रीकृष्ण ने कहा- तुम कल्याण-सन्तान का पालन करना, पति के भाई बन्धुओं को सुखी रखना, पति से किसी प्रकार का कपट मत रखना- और उसकी सेवा करना। यह स्त्री का धर्म है। तब भी गोपियों के मन में रुचि नही हुई पति-सेवा के लिए। तो भगवान् ने कहा- अरे! तुम्हारे पतियों में कोई दोष है क्या? मारते-पीटते होंगे मालूम पड़ता है- दुःशीलो दुर्भगो वृद्धो- एक की ओर देखकर कहा- अहो, तुम्हारा पति तुमको मारता है, समझ गया। दूसरी की ओर देखकर कहा-
अच्छा, तुम्हारा पति पैसा नहीं लाता है क्या? अभागा है! तभी तुम उससे नाराज हो। तीसरी की ओर देखा- अब बुढ़ऊ मिल गये क्या? तुम बेवकूफ बनाकर आयी हो? बोले- जड़ो-रोगि अधनोऽपि वा- क्या बेहोश पड़ा है और छोड़कर चली आयी हो? अरे बाबा देखो, पति कैसा भी हो, तब भी पत्नी का धर्म है कि अपने शील-स्वभाव से बुरे, अभागे, बुड्ढे, मूर्ख रोगी और निर्धन पति का भी त्याग न करे। यह स्त्री का धर्म है। तुम लोग भाई पहचान लो तुम्हारे कैसे पति हैं? क्या ऐसे पतियों को छोड़कर तुम आयी हो? देखो, तुम अगर अपना लोक-परलोक बनाना चाहती हो तो पति मत छोड़ो।

और आपात की तुम्हारे पति ने कोई पाप-वाप कर दिया है क्या? देखो- इसके संबंध में शास्त्र का निर्णय है कि यदि पति ब्रह्महत्या करे, शराब पिये, चोरी करे और गुरु-पत्नी से गमन करे, और ऐसे कुकर्मी लोगों के साथ बैठे, खाये-पिये, मिले-जुले-पाँच महापाप हो गया।

ब्रह्महा च सुरापायी स्तेयी च गुरुतल्पगः ।
महान्ति पातकानयाहुः तत् संसर्गी च पञ्चमः ।।

तो स्त्री ऐसी स्थिति में क्या करें?

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

रासपंचाध्यायी -अखण्डानन्द सरस्वती
प्रवचन संख्या विषय का नाम पृष्ठ संख्या
1. उपक्रम 1
2. रास की भूमिका एवं रास का संकल्प 12
3. रास के हेतु, स्वरूप और काल 28
4. रास के संकल्प में गोपी-प्रेम की हेतुता 40
5. रास की दिव्यता का ध्यान 51
6. योगमाया का आश्रय लेने का अर्थ 63
7. योगमायामुपाश्रित:-भगवान की प्रेम-परवशता 75
8. कृपायोग का आश्रय और चंद्रोदय 85
9. रास-रात्रि में पूर्ण चंद्र का दर्शन 96
10. रास में चंद्रमा का योगदान 106
11. भगवान ने वंशी बजायी 116
12. गोपियों ने वंशी-ध्वनि सुनी 127
13. श्रीकृष्ण के प्रति गोपियों का अभिसार 141
14. जो जैसिह तैसिह उठ धायीं-1 152
15. जो जैसिह तैसेहि उठ धायीं-2 163
16. जो जैसेहि तैसेहि उठि धायीं-3 175
17. जार-बुद्धि से भी भगवत्प्राप्ति सम्भव है 187
18. विकारयुक्त प्रेम से भी भगवत्प्राप्ति सम्भव है 198
19. गोपी दौड़कर गयीं कृष्ण के पास और कृष्ण ने कहा कि लौट-जाओ 209
20. श्रीकृष्ण का अमिय-गरल-वर्षण 214
21. गोपी के प्रेम की परीक्षा-धर्म का प्रलोभन 225
22. ‘लौट-जाओ’ सुनकर गोपियों की दशा का वर्णन 238
23-24. प्रेम में सूखी जा रहीं गोपियाँ आखिर बोलीं 248
(प्रणय-गीत प्रारम्भ)
25. गोपियों का समर्पण-पक्ष 261
26. श्रीकृष्ण में रति ही बुद्धिमानी है 276
27. गोपियों की न लौट पा सकने की बेबसी और मर जाने के परिणाम का उद्घाटन 286
28. गोपियों का श्रीकृष्ण को पूर्व रमण की याद दिलाना 297
29-31. गोपियों में दास्य का उदय 307
32. गोपियों में दास्य का हेतु-1 338
33. गोपियों में दास्य का हेतु-2 353
34. गोपियों में दास्य का हेतु-3 366
35-36. गोपियों की चाहत 376
(प्रणय-गीत समाप्त)
37-39. प्रथम रासक्रीड़ा का उपक्रम 393
40. रास में श्रीकृष्ण की शोभा 429
41. रास-स्थली की शोभा 441
42. रासलीला का अन्तरंग-1 453
43. रासलीला का अन्तरंग-2 467
44. रासलीला का अन्तरंग-3 480
45. रासलीला का अन्तरंग-4 494
46. अंतिम पृष्ठ 500

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