विषय सूचीरासपञ्चाध्यायी -स्वामी अखण्डानन्द सरस्वतीगोपी के प्रेम की परीक्षा-धर्म का प्रलोभनसत्री का सबसे बड़ा धर्म क्या है? भर्तुः शुश्रूषणम्- अपने पति की शुश्रूषा सबसे बड़ा धर्म है। बोले- सेवा में कोई शर्त है? कहा- हाँ, एक शर्त है। कपट नहीं जोड़ना- अमायया। धर्म में तो अधिकारी पुरुष, श्रद्धा से, विधिपूर्वक, धर्म का अनुष्ठान करे, तो वह फलप्रद होता है। और यदि अधिकारी न हो तो भी धर्म गया, और श्रद्धा न हो तो भी गया और अधिकारी हो, श्रद्धा हो, और विधि न हो, तो नारायण। अपने मन में फल की उत्पत्ति नहीं होती। यह जिसको सनातन धर्म कहते हैं; वह स्वर्गप्राप्तक धर्म है। माने उसके फल के रूप में यह वर्णन आता है कि यह धर्म करो तो तुमको स्वर्ग की प्राप्ति होगी। अच्छा, स्वर्गप्राप्ति के साधन भूत जो धर्म है उसका अनुष्ठान कौन करे? तो कहा- ‘अर्थी समर्थी विद्वान शास्त्रेणा-पर्युदस्तः’ शबरस्वामी पूर्वमीमांसादर्शन भाष्य प्रारब्ध करते समय लिखते हैं- ‘अर्थी’ होवे माने स्वर्ग चाहता होवे; और लंगड़ा लूला, अंधा, यज्ञ करने में असमर्थ न हो, अर्थात् समर्थ होवे; और शास्त्र में सके लिए उस धर्म का अनुष्ठान निषिद्ध न होवे, तब धर्म करे। अब महाराज! जो स्वर्ग न चाहता हो, उससे कहो कि तुम स्वर्ग प्राप्त करने के लिए धर्म करो, तो यह क्या वह धर्म करेगा? नहीं, करेगा, क्योंकि वह अर्थी नहीं है। अर्थी न होने से माने स्वर्ग का इच्छुक न होने से वह धर्म का अनधिकारी हो गया। यह जो श्रीकृष्ण का धर्मोपदेश है यह भी जो स्वर्ग का अर्थी हो, उसके लिए स्वर्ग का प्रापक धर्म है। उसमें क्या चाहिए? तो, उसमें श्रद्धा चाहिए ‘अमायया’। और पति के जो भाई-बन्धु हों, जिनकी सेवा से पति की प्रसन्नता हो, उनकी भी सेवा करे। महाराज! एक आदमी के घर में बहू आयी। पति से तो बहुत प्रेम करे; पति ने कहा कि हमारी माताजी के पाँव छूकर आओ। तो बोली कि देखो- हमारा ब्याह तुम्हारे साथ हुआ। तुम कहो- हम तुम्हारे पाँव पर शिर रगड़ने को तैयार हैं, लेकिन माताजी-पिताजी को हम नहीं जानते हैं। पति बेचारे ने शिर पीट लिया। भाई, जैसे पति सुख से घर में रह सके, उसकी माता अनुकूल हो, पिता अनुकूल हो, भाई अनुकूल हों, पति के सुख की दृष्टि से वातावरण को भी तो ठीक बनाना पड़ता है न! तो जैसे पित की सेवा धर्म है, इसी प्रकार जैसे पति के जीवनयापन में सुविधा हो, उसके अनुकूल वातावरण बने, माता आशीर्वाद दे कि बेटा, ऐसी बहू आयी कि हमको बड़ी शान्ति मिली, बड़ा सुख मिला, इसको ईश्वर हमेशा सौभाग्यवती बनावें। आशीर्वाद देते हैं। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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