विषय सूचीरासपञ्चाध्यायी -स्वामी अखण्डानन्द सरस्वतीजो जैसेहि तैसेहि उठि धायीं-3पति से गोपी बोली- अच्छा बाबा; यह घर तुम्हारा, यह शरीर तुम्हारा, निकलने तुम दोगे नहीं; लेकिन इन आँखों से श्रीकृष्ण के सिवाय और किसी को हम देखेंगी नहीं- मीलितलोचनाः। बोले देखो, जब प्रेम का उदय होता है तो ब्रह्म विषय का त्याग करना ही पड़ता है। संन्यासियों का मंत्र तो आपको मालूम होगा-कश्चिद्धीरः प्रत्यगात्मानमैक्षत् आवृत्तचक्षुः अमृत्वमिच्छन प्रत्यगात्मानमैक्षत आवृत्त चक्षु अमृतत्त्वमिच्छन्न कश्चित् धीरः । अरे, वही औपनिषद अमृत जिसको कोई-कोई धीर पुरुष अपनी इन्द्रियों को विषय से पलटकर अपने आत्माओं में देखता है, वही है यह साँवरा-साँवरा, झिलमिल-झिलमिल, कृष्णामृत, वह स्वर्ग में रहने वाला परोक्ष अमृत नहीं, अपनी इंद्रियों से प्रत्यक्ष उसका पान करो। अतः आगे आ जाओ, आगे आ जाओ! यदि आत्मामृत, कृष्णामृत, आनन्दामृत, रसामृत की इच्छा हुई तो आँख बन्द करो, वाह्य विषय का परित्याग होगा- पराश्चिखानि व्यतृणत्स्वयम्भूः तस्मात्परांङ् पश्यन्ति नान्तरात्मन्। इन्द्रियाँ बहिर्मुख हैं। ये तो मर गयीं बिचारी, आँख बन्द करके परमात्मा का चिन्तन करो। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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