विषय सूचीरासपञ्चाध्यायी -स्वामी अखण्डानन्द सरस्वतीजो जैसेहि तैसेहि उठि धायीं-3भक्त लोग जब भक्ति बल का निरूपण करते हैं तो कहते हैं कि देखो हमारी भक्ति तुम्हारे ज्ञान बलवान है। कैसे, क्या प्रमाण? बोले- ज्ञान से सब कर्मों का क्षय हो जाता है, लेकिन प्रारब्ध का क्षय नहीं होता। शंकराचार्य भगवान् भी- ज्ञानाग्निः सर्वकर्माणि भस्मसात् कुरुते- इसके भाष्य में लिखते हैं- सामर्थ्याद् येन कर्मणा शरीरं आरब्धं तत् प्रवृत्तिफलत्दवाद् उपभोगेन एव क्षीयते। ज्ञान की आग जब जली है तब सब कर्मों को भस्म कर देती है लेकिन प्रारब्ध को भस्म नहीं करती, क्योंकि वे तो फल देने के लिए प्रवृत्त हो चुके हैं अतः उनका भोगकर ही क्षय होगा। लेकिन, जब प्रेम की आग जलती है तो प्रेमाग्नि बड़ी प्रबल है। भागवत के तीसरे स्कन्ध में इसका वर्णन है- देवानां गुणलिंगानां आनुश्रविककर्मणाम् । जैसे खाये हुए को जठराग्नि पचा देती है, ऐसे भक्ति की आग जब हृदय में जलती है, तो पंचकोष को भस्म कर देती है और शुद्ध आत्मा परमात्मा से मिल जाती है। श्रीमद्भागवत के तृतीय स्कन्ध में कपिल-देवहूति के सम्बंद में यह बात आयी है- ‘जरयत्याशु या कोशं निगीर्णमनलो यथा।’ अब आपको उसका नमूना दिखाते हैं। घर का दरवाजा बन्द है और वह ग्वाला (गोपी का पति) भी महाराज बड़ा प्रौढ़ था। दरवाजे पर बैठ गया। बोला- देखो, मैं कोई ऐरा-गैरा-नत्थूखैरा नहीं हूँ। जैसे सब गोपियाँ चली गयीं, वैसे यदि तू भी चली गयी तो हड्डी-पसली तोड़ दूँगा। किवाड़ी बन्द करके, ताला बन्द करके बैठ गया। खिड़की भी बन्द कर दी, चिड़िया उड़ने भर की जगह भी निकलने को नहीं मिली। गोप्योऽलब्धविनिर्गमाः। अब देखो कर्म जलाने की प्रक्रिया चली। यह भागवत-कृपा है। इसका नाम पुष्टि है, इसका नाम मर्यादा नहीं है। यह भगवान् की ओर से भक्त को सहायता मिल रही है। गोपियों ने क्या किया- तद्भावना युक्ताः हृदय में श्रीकृष्ण की भावना से युक्त हो करके मीलितलोचनाः आँख बन्द करके बैठ गयीं। ‘मीलितलोचना’ शब्द जा मामूली सा है, परंतु इसका आशय यह है कि गोपी कहती हैं कि यदि इन आँखों से श्रीकृष्ण का दर्शन नहीं होता है, तो फिर कोई दूसरी चीज भी हम नहीं देखेंगी। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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