विषय सूचीरासपञ्चाध्यायी -स्वामी अखण्डानन्द सरस्वतीजो जैसिह तैसिह उठ धायीं-1कई गोपी पति की सेवा-शुश्रूषा में लगी हुई थीं- शुश्रूषन्त्यः पतीन्। वे भी वंशी-ध्वनि सुनकर चल पड़ीं। बोले- भाई, भले सबको छोड़ दें, लेकिन जब पेट में चूहे कूदते हों, तो प्रेम कोई नहीं करेगा, क्योंकि अपने शरीर से तो प्रेम ज्यादा होता है। आपने सुना होगा कि अकबर ने बीरबल से पूछा कि दोनों की दाढ़ी में अगर एकसाथ आग लगे तो पहले किसकी बुझाओगे? बीरबल ने कहा कि पहले अपनी बुझावेंगे। तो जहाँ अपने को तकलीफ होने लगती है तो दूसरे को भूल जाता है। हमारे गाँव में कहावत है- पहले आत्मा, पीछे परमात्मा। तो बोले- एक गोपी उस समय कर रही थी भोजन। हमने तो ऐसी स्त्रियों के बारे में भी सुना है कि घर में मुर्दा पड़ा है तो पहले भोजन कर लेती हैं फिर जोर से रोना शुरू करती हैं। तो गोपियाँ भोजन कर रही थीं ‘अश्रन्त्य’ पर महाराज। वह थाली रह गयी वहाँ, रोटी रह गयी वहाँ, वे तो मुँह घुमाकर चल पड़ीं। बेचारियं के पास रूमाल भी नहीं था कि मुँह पोछ लें। आजकल भी लोग मुँह पानी से कम धोते हैं, रूमाल से ही पोंछ लेते हैं। अश्नत्योपास्य भोजनम्- भोजन एक ओर रह गया और गोपी चल पड़ी। वह तो योगमाया ने उसका हाथ मुँह पीछे धुलाया। देखा- कृष्ण के पास जा रही हैं तो योगमाया ने आकर उसका झट हाथ-मुँह धो दिया। लिम्पन्त्यः प्रमृजन्त्यो ऽन्या अञ्जन्त्यः काश्च लोचने । बोले- बाबा प्रेम में भोजन छोड़ना तो आसान है लेकिन स्त्री अगर श्रृंगार कर रही हो, श्रृंगार- गृह में हो, तो नहीं छोड़ सकती। उस समय कोई गोपी श्रृंगार कर रही थी। वह होठों पर लेप कर रही थी- लिम्पन्त्यः। कागज पर स्याही का लेप करते हैं; इसलिए लिखी हुई आकृतियों से व्यक्त भाषा को लिपि बोलते हैं। पर उसी को यदि लोहे की कील से ताँबे के पत्र पर उल्लेख कर दें, तो उसको टंकण बोलेत हैं क्योंकि टाँकी मारके लिखते हैं। ऐसे ही यह लिपिस्टिक है। लिपिस्टिक क्या है? कि यह लोपोस्टिक है। ओंठ पर लेप करती है इसलिए इसका नाम लिपिस्टिक है। तो ‘लिम्पन्त्यः प्रमृजन्त्योऽन्या अञ्जन्त्यः काश्च लोचने’- तीन प्रकार का संस्कार वह गोपी कर रही थी। अपने को सजाने-सँवारने में तीन प्रकार की विधि है : एक तो ‘प्रमृजन्त्यः’- जो शरीर में मैल लगी हुई हो उसको उबटन से निकाल देना, साबुन से निकाल देना, उसको छुड़ा देना, पोंछ देना, इसको बोलेंगे- प्रमार्जन। दूसरी विधि है- लेपन; जहाँ-जहाँ कमी मालूम पड़ती हो वहाँ-वहाँ लेप लगाकर उस कमी को दबा देना और तीसर है- ‘अञ्जन्त्यः’- अंजन लगाना आँख में। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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