विषय सूचीरासपञ्चाध्यायी -स्वामी अखण्डानन्द सरस्वतीजो जैसिह तैसिह उठ धायीं-1‘पयोऽधिश्रित्य संयावं अनुद्वास्यापरा ययुः’ कोई-कोई गोपी दूध को आग पर चढ़ायी थी पर दूध का भविष्य भूल गयी। वंशीध्वनि जो कान में पड़ी और आँख में, हृदय में और रोम-रोम में उससे जो मिलन की व्याकुलता की व्याप्ति हुई उससे दूध के भविष्य का ख्याल नष्ट हो गया। माषाश्च मे गोधूमाश्च में यज्ञेन कल्पन्ताम् । शुक्ल यर्जुवेद संहिता में जौ, मूँग, उड़द, गेहूँ सबका वर्णन है। तो, यावाग् जौ से बनता है; यावागू माने लप्सी। और संयाव माने हलुआ, घी डालकर खूब बढ़िया बनाते थे। संयाव कहने का मतलब उसमें जौ भी डाल दिया था, दूध भी डाल दिया था, घी डाल दिया था और आग पर भी चढ़ा दिया था। सब ठीक, लेकिन महाराज, जब कृष्ण की बाँसुरी बजी तो हलुए की मिठास भूल गयी, अनुद्वास से उतारा नहीं। चल पड़ी कृष्ण के लिए। शुश्रूषन्त्यः पतीन् काश्चिद्श्रन्तोपास्य भोजनम् । परिवेषयन्त्यः तद्हित्वा पाययन्त्यः शिशून् पयः । |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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