विषय सूचीरासपञ्चाध्यायी -स्वामी अखण्डानन्द सरस्वतीजो जैसिह तैसिह उठ धायीं-1गाय दुहती हुई ही कृष्ण की ओर चली। और दोहं हित्वा समुत्सुकाः- दोह छूट गया माने दोहनी पात्र छूट गया, गाय वहीं रह गयी, बछड़ा वही रह गया; बस हाथ में जो दोहने की मुद्रा है वह ज्यों-की-त्यों रह गयी है और आप आँख बन्द करके चली जा रही है, खिंची हुई चली जा रही हैं, माने किसी ने जादू डाला है, जैसे किसी ने जादू के सरसों डाल दिए हों उसके ऊपर जिससे वह खिंची जा रही हैं, मानो आकर्षण मंत्र से, बाँसुरी से हिप्नोटाइज कर दिया हो- दोहं हित्वा समुत्सुकाः। योग आता है तो आदमी को स्थिर करता है और प्रेम आता है तो विचलित करता है। धर्म आता है तो क्रिया में स्थिर करता है और प्रेम आता है तो प्रियतम में स्थिर करता है। योग आत्मा में स्थिर करता है और ज्ञान सबको सम कर देता है। जिसमें समत्व न हो वह ज्ञान नहीं। ज्ञान में समता और वैराग्य में उप रमता आती है जबकि प्रेम में ममता और प्रियतम् में रमता आती है। ‘दोहं हित्वा समत्सुकाः’- दुहती हुई गोपी चली और वर्तमान की दोहन क्रिया का गोपी को विस्मरण हो गया क्यों? कि समुत्सुकाः मिलन की उत्सुकता थी, इसलिए। अच्छा आपको बतावें- स्त्रियों का यह स्वभाव होता है। क्यों कि समझो वे उनका काम कर रही हों या कपड़े एक ऊपर कोई बेलबूटा बना रही हों, और इतने में ऐसा मालूम पड़े कि सड़क पर से कोई बारात जा रही है, बाजे बजने लगे, तो हाथ में ऊन लिए हुए ही और कपड़ा लिए ही निकलकर छज्जे में खड़ी हो जाती हैं- जो जैसी रहती हैं वैसी ही। तो यहाँ भी- ‘पयोऽधिश्रित्य संग्रावं अनुद्वास्यापरा ययुः’ दूध-दुहना कुल धर्म था। वंशीध्वनि सुनकर वह छूट गया। अब पारिवारिक धर्म भी छूटा है। कैसे? कि दूध करम करना, घर में रोटी बनाना, हलुआ बनाना ये पारिवारिक धर्म हैं। अच्छा गोपी के घर में ‘पयोऽधिश्रित्य’। एक गोपी ने घर में दूध तो चढ़ा दिया था आग पर। इतने में बज गयी बाँसुरी। तो हमने दूध चढ़ाया था तो आगे उतारेंगे नहीं तो उफन के सारा का सारा आग में चला जावेगा और घर की हानि हो जाएगी, इस बात का ख्याल किये बिना ही वह दूध ज्यों का त्यों छोड़कर चल दी। माने काम देखकर भी प्रेम थकित नहीं होता और भविष्य का विचार करके भी प्रेम थकित नहीं होता। ब्रिटिश परंपरा में भी अभी थोड़े दिन पहले ऐसा हुआ था। एक सज्जन एक स्त्री से ब्याह करने वाले थे तो उनसे कहा गया कि ब्याह करोगे तो- राजगद्दी नहीं मिलेगी। उसने कहा कि भले हमको राजगद्दी ना मिले, पर हम ब्याह करेंगे तो इसी स्त्री से। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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