विषय सूचीरासपञ्चाध्यायी -स्वामी अखण्डानन्द सरस्वतीजो जैसिह तैसिह उठ धायीं-1तो बाबा, दो दिन में बात फैलाने वाली है- चंद्रमा कहीं हाथ से थोड़े ही छिपता है। प्रेम आता है हृदय में तो आशा लेकर आता है, प्रतीक्षा लेकर आता है, व्याकुलता लेकर आता है? यह नहीं कि वही सब कुछ करेगा। जैसे श्रीकृष्ण के हृदय में ‘रन्तुं मनश्चक्रे’ विहार का संकल्प था, वैसे गोपियों के मन में भी उत्सुकता थी। उस गोपी के पास भगवान् नहीं जा सकते या उसको अपने पास नहीं बुला सकते, जिसके मन में उत्सुकता न हो। समुत्सुकाः- उत्सुकता है गोपी के मन में। और उत्सुकता का लक्षण क्या है, पहचान क्या है? गोपी काम कर रही थी- ‘दुहन्त्योभिययुः काश्चिद्’। अपने कुल का, अहीर कुल का धर्म कर रही थी। ग्वाले कुल का धर्म है कि वहाँ ग्वालिनी दूध दुहती हैं। सो कोई गोपी उस समय गाय दुह रही थी। यह नहीं समझना कि कोई आध-सेर पाव-भर दूध देने वाली गाय दुहती थीं- दस-दस बीस-बीस सेर दूध देने वाली गायें थीं और उनको हाथ से ही दुहती थीं। बंबई के सीकिंया पहलवान यदि दुहने लगें तो उनको उँगली टूट जायँ। ये तो गूजरी महाराज वह मुट्ठी चलाती हैं, उँगली से कब तक दुहेंगी? हमको भी दुहने का काम पड़ा है बचपन में। जो लोग उँगली से कब तक दुहेंगी? हमको भी दुहने का काम पड़ा है बचपन में। जो लोग उंगली से दुहते हैं उनकी उँगली दुःख जाती है और जो मुट्ठी से दुहते हैं वे ग्वालिनी बाल्टी लेकर दुहने बैठती हैं। सेर दो सेर दूध दुहना होता है तो जाँघ पर रखकर दुह लेती हैं। पर दस-पाँच सेर दूध दुहना हो, तो बाल्टी धरती पर रखकर दुहते हैं। ‘दोहं हित्वा समुत्सुकाः’- हुआ क्या अब? देखो, इसमें जो दोहन कर्म था वह बड़ा था या जो दोहनी पात्र था वो बड़ा था या ग्वालिनी के हृदय में जो उत्सुकता थी वह बड़ी थी? जब बाँसुरी बजी, तो गाय तो रह गयी खड़ी और बछड़ा रह गया बँधा हुआ नुवनासे। जिससे गाय के पाँव में बछड़े को बाँधते हैं उसका नाम नुवना है। संस्कृत में उसको निर्योग बोलते हैं। गाय के पाँव में फंदा लगाया भी रह गया और नुवना लगाया भी रह गया। और वह बाल्टी जिसमें दूध दुह रही थीं, वह धरती पर रक्खी रह गयी। और जब बांसुरी की ध्वनि कान में पड़ी तो उसका मुँह घूम गया। उधर जिधर से वंशीध्वनि आ रही थी और हाथ से ‘ऐसे-ऐसे’ करती जाएँ जैसे गाय दुह रही हों। और कृष्ण की तरफ चलती जायँ। श्लोक में ‘दुहन्त्यः’ पद में शतृ प्रत्यय का प्रयोग है। अतः दुहन्त्यः का अरथ है- दुहती हुई- दुहन्त्यः अभिययुः कृष्णस्याभिमुखं ययुः। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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