गोपी गीत -करपात्री महाराज पृ. 450

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गोपी गीत -करपात्री महाराज

गोपी गीत 16

आपके इस उच्च उदात्त गीत, धर्म ब्रह्मैक सर्वोत्कृष्ट गीत से मोहित ‘मा भगवद्विषयिणी प्रमा-ऊहिता याभिस्ताः तवोद्गीतमोहिताः’ आपके मुखारविन्द से निर्गत वेणु-गीत-पीयूष के माधुर्य के अनुभव द्वारा हमने आपके लोकोत्तर सौन्दर्य-सौरस्य-माधुर्य-सौगन्ध्य सुधा जलनिधि का अनुमान किया; यह अनुमान करते हुए कि जिस वेणु-गीत प्रवाह में इतने देर से आने पर भी ऐसा स्वारस्य माधुर्य है उसके उद्गम-स्थल उस सर्वाधिष्ठान परात्पर परब्रह्म प्रभु में कितना लोकोत्तर माधुर्य, कितनी अद्भुत मनोहारिता होगी। हे श्यामसुन्दर! मदन-मोहन! आप हम पर कृपा करें, दर्शन दें।

मानिनी गोपांगनाएँ कह रही हैं,
‘पतिसुतान्वयभ्रातृबान्धवान् अतिविलंध्य तेऽन्त्यच्युतागताः’ हे अच्युत! ये जो बहुत सी गोपांगनाएँ अपने सर्वस्व का त्यागकर आपके मंगलमय चरणारविन्दों की शरण में आयी हैं इनका तो ध्यान करें। हमारी बात तो भिन्न है; हम तो आपके विशेष आग्रह के कारण आपके प्रति स्वानुग्रहवशत् ही आई हैं। हे श्यामसुन्दर! लगता है कि ‘शठं प्रति शाठयम्ं’ नीति आप नहीं जानते। शठता तो शठ के प्रति हो करनी चाहिए। ‘एताः सरलाः’ ये तो बिचारी सरल गोपाली, व्रजवधूटी हैं। ‘कितव योषितः कस्त्यजेन्निशि’, आप व्यर्थ ही शठ बन रहे हैं, इनके प्रति शठता अनुचित है; इन पर कृपा कर इन्हें दर्शन दें। श्रुतिरूपा गोपांगनाएँ कह रही हैं;

‘पतिसुतान्वयभ्रातृबान्घवा नतिविलड्घ्य तेऽन्त्यच्युतागताः।’

श्रुतियाँ दो प्रकार की होती हैं; अन्यपूर्विका तथा अनन्यपूर्विका। जिनका सम्बन्ध इन्द्र-वरूणादि देवताओं से प्रतीत हो रहा है वे अन्य-पूर्विका हैं; ‘सत्यं ज्ञानमनन्तं ब्रह्म’, ‘विज्ञानमानन्दं ब्रह्म’ इत्यादि श्रुतियाँ साक्षात् परब्रह्म परमेश्वर का ही बोधन कराती हैं, उनसे ही सम्बन्ध रखती हैं अतः ये अनन्य-पूर्विका हैं।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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गोपी गीत
क्रम संख्या विषय पृष्ठ संख्या
1. भूमिका 1
2. प्रवेशिका 21
3. गोपी गीत 1 23
4 गोपी गीत 2 63
5. गोपी गीत 3 125
6. गोपी गीत 4 154
7. गोपी गीत 5 185
8. गोपी गीत 6 213
9. गोपी गीत 7 256
10. गोपी गीत 8 271
11. गोपी गीत 9 292
12. गोपी गीत 10 304
13. गोपी गीत 11 319
14. गोपी गीत 12 336
15. गोपी गीत 13 364
16. गोपी गीत 14 389
17. गोपी गीत 15 391
18. गोपी गीत 16 412
19. गोपी गीत 17 454
20. गोपी गीत 18 499
21. गोपी गीत 19 537

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