गोपी गीत -करपात्री महाराजगोपी गीत 16आपके इस उच्च उदात्त गीत, धर्म ब्रह्मैक सर्वोत्कृष्ट गीत से मोहित ‘मा भगवद्विषयिणी प्रमा-ऊहिता याभिस्ताः तवोद्गीतमोहिताः’ आपके मुखारविन्द से निर्गत वेणु-गीत-पीयूष के माधुर्य के अनुभव द्वारा हमने आपके लोकोत्तर सौन्दर्य-सौरस्य-माधुर्य-सौगन्ध्य सुधा जलनिधि का अनुमान किया; यह अनुमान करते हुए कि जिस वेणु-गीत प्रवाह में इतने देर से आने पर भी ऐसा स्वारस्य माधुर्य है उसके उद्गम-स्थल उस सर्वाधिष्ठान परात्पर परब्रह्म प्रभु में कितना लोकोत्तर माधुर्य, कितनी अद्भुत मनोहारिता होगी। हे श्यामसुन्दर! मदन-मोहन! आप हम पर कृपा करें, दर्शन दें। मानिनी गोपांगनाएँ कह रही हैं, श्रुतियाँ दो प्रकार की होती हैं; अन्यपूर्विका तथा अनन्यपूर्विका। जिनका सम्बन्ध इन्द्र-वरूणादि देवताओं से प्रतीत हो रहा है वे अन्य-पूर्विका हैं; ‘सत्यं ज्ञानमनन्तं ब्रह्म’, ‘विज्ञानमानन्दं ब्रह्म’ इत्यादि श्रुतियाँ साक्षात् परब्रह्म परमेश्वर का ही बोधन कराती हैं, उनसे ही सम्बन्ध रखती हैं अतः ये अनन्य-पूर्विका हैं। |