गोपी गीत -करपात्री महाराजगोपी गीत 16गोपांगनाएँ कह रही हैं; ‘गतिविदः वयं तवोद्गीतमोहिताः ते अन्ति आगताः’ हमारे आगमन में केवल गति-विज्ञान ही कारण नहीं हैं; केवल गीत-विज्ञान हेतु अपर्याप्त है; जो प्राणी कर्म, उपासना एवं ज्ञान-काण्ड का रहस्यज्ञ हो, आपकी मंगलमयी कृपा का भाजन हो, साथ ही, अपने सर्वस्व का त्याग कर आपके चरणाविन्दों की शरण आया हो वही संसार से विमुक्त हो सकता है; अन्यथा मुक्ति अत्यन्त दुर्लभ है। ‘आवत एहिं सर अति कठिनाई। राम कृपा बिनु आइ न जाई।। गृह-कार्यरूप प्रपंच के दुर्गम शैल का उल्लंघन कर मानसरोवररूप मुक्ति सरोवर तक पहुँचना असम्भव है। भगवत्-कृपा बिना इस मुक्तिरूप सरोवर तक कदापि पहुँचा नहीं जा सकता। ‘तवोद्गीतमोहिताः- आपके उद्गीत से मोहित; उच्चैगीति, वेणुनाद-पीयूष, श्रीकृष्णचन्द्र परमानन्द कन्द के मुखचन्द्र से निर्गत जो महत्त्वपूर्ण वेणु-गीत है, वही प्राणों को संसार के माया-मोह से बलात् छुड़ाकर भगवद्-चरणारविन्दों में खींच ले जाता है। सामान्यतः किसी भी प्रवाह मे गिरी हुई वस्तु को गति भी तदनुकूल ही होती है परन्तु वेणु-गीत-प्रवाह का यह अद्भुत चमत्कार है कि इसमें निक्षिप्त वस्तु गीत के उद्गम तक पहुँच जाती है। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ मानस बाल० 38