गोपी गीत -करपात्री महाराज पृ. 378

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गोपी गीत -करपात्री महाराज

गोपी गीत 13

संसार में जीवात्मा का परिभव, अवमान निरन्तर होता रहता है। संसार-कर्तृक नाना हेतुओं द्वारा जीवात्मा का अनन्त, महा-महिम वैभव, उसकी अखण्डता, अजरता, अमरता, अनंतता, सर्वबोधता सदा ही पद-दलित होती रहती है। जिस जीवात्मा ने भगवत-पाद-पंकजों का ध्यान किया, उसके संसार-कर्तृक अवमान का अन्त हो जाता है। भगवत्-चरणारविन्दों का ध्यान करने से बुद्धि शुद्ध हो जाती है, बुद्धि शुद्ध होने पर अविद्या एवं तत्कार्यात्मक समूल विश्व-प्रपंच का उन्मूलन हो जाता है; विश्व प्रपंच का उन्मूलन होने पर संसार-कर्तृक अवमानना के कारण का ही बोध हो जाता है। भगवत्-चरणारविन्द ‘अभीष्टदोहम्’ हैं। सम्पूर्ण अभीष्ट के दाता हैं। अनिष्ट-निवृत्ति एवं परमानन्द-प्राप्ति ही अभीष्ट है। दरिद्रता, दीनता, परतन्त्रता, आधि-व्याधि, शोक-संतान ही अनिष्ट है। भगवत्-चरणारविन्द ‘तीर्थास्पदं’ हैं, तारनेवाला ही तीर्थ है ‘तारत्येनस इति तीर्थः’ सब तीर्थों का मूल गंगा है। सर्वतीर्थमयी भगवती भागीरथी गंगा साक्षात् ब्रह्मद्रव है। अनन्त-ब्रह्माण्ड-नायक, सर्वाधिष्ठान, सच्चिदानन्दघन, परब्रह्म ही नीर बनकर गंगारूप में प्रवाहित है।

‘नराकरं भजन्त्येके निराकारमथपरे।
वयं संसारसंतप्ता निराकारमुपापस्महे।।’

अर्थात, भक्त कहता है,! कोई तो नराकार राम-कृष्ण आदि रूपों में ब्रह्म की पूजा करते हैं; कोई निराकार, अदृश्य, अग्राह्य, अचिन्तृय, अव्यपदेश्य ब्रह्म की उपासना करते हैं परन्तु हम तो निराकार, सर्वतीर्थमयी, भास्वती भगवती गंगा की उपासना करते हैं। भगवत्-चरणारविन्द से ही भगवती गंगा का आविर्भाव हुआ है, ऐतावता भूतभावन भगवान् सदाशिव भी अपनी तेजोमयी प्रकाश-मयी जटाराशि में भगवती गंगा को धारण किए रहते हैं।

‘शिवविरिञ्चिनुतं शरण्यं भृत्यार्तिहम्’ भगवत्-चरणारविन्द-भृत्य, भक्तजन की सम्पूर्ण आर्ति के निवारक, आर्ति के हर्ता हैं। भगवान् के मंगलमय पाद-पंकज ही समग्र यश का अधिष्ठान हैं। आर्त का परित्राण ही दिग्दिगन्तव्यापी यश का मूल है। जैसे कोई राजाधिराज, महाराज, शाहंशाह, चक्रवर्ती नरेन्द्र किसी व्यक्ति-विशेष के वृजिनापवर्जन हेतु उसके घर नहीं जाते अपितु अपनी आज्ञा से ही दुःख-हरण कर लेते हैं वैसे ही प्रत्येक शोकग्रस्त व्यक्ति अनुभव करता है कि किसी विशिष्ट अदृश्य शक्ति द्वारा उसके दुःखों का निवारण किया गया। उदाहरणतः द्रौपदी, गजेन्द्रदिकों के उपाख्यान प्रसिद्ध हैं। आध्यात्मिक, आधिदैविक, आधिभौतिक त्रिविध-ताप में एकमात्र ईश्वरीय आश्रय के आधार पर ही धैर्य बना रह सकता है।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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गोपी गीत
क्रम संख्या विषय पृष्ठ संख्या
1. भूमिका 1
2. प्रवेशिका 21
3. गोपी गीत 1 23
4 गोपी गीत 2 63
5. गोपी गीत 3 125
6. गोपी गीत 4 154
7. गोपी गीत 5 185
8. गोपी गीत 6 213
9. गोपी गीत 7 256
10. गोपी गीत 8 271
11. गोपी गीत 9 292
12. गोपी गीत 10 304
13. गोपी गीत 11 319
14. गोपी गीत 12 336
15. गोपी गीत 13 364
16. गोपी गीत 14 389
17. गोपी गीत 15 391
18. गोपी गीत 16 412
19. गोपी गीत 17 454
20. गोपी गीत 18 499
21. गोपी गीत 19 537

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