गोपी गीत -करपात्री महाराज पृ. 360

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गोपी गीत -करपात्री महाराज

गोपी गीत 12

व्यास शिष्यों द्वारा भगवान के प्रेममय स्वरूप का ज्ञान प्राप्त कर शुकदेव जी व्यास जी के पास आए और उनसे श्रीमद् भगवत को पढ़ा।
“प्रेम्णा पठर्नूभागवतं शनैः शनैः”।[1] निष्कर्ष यह कि भगवान् की भी सापेक्षता का प्राकट्य अनिवार्य हैः अस्तु ““दर्शयन् मुहुः” विभिन्न प्रसंगों से बारम्बार दर्शन देकर श्रीकृष्ण अपनी सापेक्षता को प्रकट कर गोपाङनाओं में अपने प्रति प्रेम प्रेरित करते हैं; तात्पर्य कि प्रभु को बारंबार अपनी ओर निहारते देख उनकी सापेक्षता के अनुभव से उनमें उत्कट प्रीति उद्भूत होती है।

भक्त अनुभव करता है कि मेरे प्रभु अलौकिक, अदृश्य, अलक्ष्य अचिन्तय, अखण्ड, अब्यपदेश, परान्तर, परब्रह्म, निरपेक्ष नहीं अपितु मेरी ही तरह हस्तपादादिनान् पुमान् हैं; इतना ही नहीं वे भी हमारी जाति के गोपाल ही हैं; वे भी हमारी ही तरह गोचारण करते हुए गोरज से धूलि-धूसरित हो जाते हैं। अतः गोपाङनाएँ कहती हैं भगवत्-स्वरूप के दर्शन से “दर्शयन् मुहुर्मनसि नः स्मरं वीर यच्छसि।”

“मोक्षमिच्छसि चेत्तात विषयान् विषवत्तयज।”

अर्थात हे तात! यदि मोक्ष ही इच्छा हो तो विषयों का विषवत् त्याग कर दें। यदा-कदा कुछ ऐसे भी दुरदृष्ट होते हैं जिनके कारण सहृदय सत्पुरुष में भी विषयसंग बन जाता है।

राम के वन-गमन का प्रसंग उपस्थित होने पर लक्ष्मण अत्यंत खिन्न हो देव से भी युद्ध के लिए तत्पर हो गए; लक्ष्मण को प्रबोध करते हुए भगवान राम कहते हैं ‘यदचिन्त्यं तु तद् दैवम्’ जो अचिन्त्य है वही दैव है। फल-प्राप्ति के अनन्तर ही देव का परिज्ञान होता है। दैव बुद्धि का अगोचर है; विभिन्न दैव, अदृष्ट अपने-अपने फल को देकर स्वभावतः ही नष्ट हो जाते हैं अतः दैव से संग्राम संभव नहीं होता।

“ऋषयोऽप्युग्रतपसो दैवेनाभिप्रचोदिताः।
उत्सृज्य नियमांस्तीव्रान् भ्रश्यन्ते काममन्युभिः।।”[2]

अर्थात, उग्रतपा, महान् तप करने वाले ऋषि भी दैव-प्रेरित हो, दैव-पराधीन होकर अपने कठिन यम-नियमादि को त्यागकर काम एवं मन्यु, क्रोध के वशीभूत हो जाते हैं। उदाहरणतः जड़भरत ब्रह्मविद्-वरिष्ठ, परं-तत्त्वविद थे तथापि, प्रारब्धकर्मवशात प्रपंच में आसक्त हो गए।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. श्री भा. मा., 6/78
  2. वा0 रा0 2/22/23

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गोपी गीत
क्रम संख्या विषय पृष्ठ संख्या
1. भूमिका 1
2. प्रवेशिका 21
3. गोपी गीत 1 23
4 गोपी गीत 2 63
5. गोपी गीत 3 125
6. गोपी गीत 4 154
7. गोपी गीत 5 185
8. गोपी गीत 6 213
9. गोपी गीत 7 256
10. गोपी गीत 8 271
11. गोपी गीत 9 292
12. गोपी गीत 10 304
13. गोपी गीत 11 319
14. गोपी गीत 12 336
15. गोपी गीत 13 364
16. गोपी गीत 14 389
17. गोपी गीत 15 391
18. गोपी गीत 16 412
19. गोपी गीत 17 454
20. गोपी गीत 18 499
21. गोपी गीत 19 537

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