गोपी गीत -करपात्री महाराज पृ. 361

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गोपी गीत -करपात्री महाराज

गोपी गीत 12

तात्पर्य यह कि सत्पुरुष को विषयों से सदा-सर्वदा बचना चाहिए; विषयों से सन्निधान से तत्त्विषयक संकल्प बनते हैं; संकल्प से आसक्ति होती है; आसक्ति हो जाने पर उनसे निवृत्ति अशक्य हो जाती है। संयम ही सम्पूर्ण रोगों की महत् औषध है; सर्वोत्तम औषध भी संयम-विवर्जित होकर निष्फल हो जाती है। पश्य-परिपालन एवं अपश्य-विविर्जन ही संयम है। विषय-दोष-विनिर्मुक्त होने के लिए विषय-सन्निधि-त्याग संयमरूप महौषध अनिवार्य है। गोपाङनाओं को अपने प्रेमास्पद भगवान् श्रीकृष्ण में ही घोर आसक्ति है अतः जैसे विवेक पुरुष सदा-सर्वदा अपने-आपको विषयों से विरक्त रखने का प्रयास करता है, वैसे ही श्रीकृष्ण के विप्रयोगजन्य ताप की दारुण व्यथा से झुलसती हुई वे अपने मन को ही मदन-मोहन, श्यामसुन्दर से विरक्त हो जाने के लिए प्रेरित करती हैं।

वे कह रही हैं “हे श्यामसुन्दर! आप हमारे सामने न आते तो बहुत अच्छा होता। गोचारण कर आप सीधे अपने घर लोट जाते तो हम अपने मन को जैसे-तैसे समझा लैतीं परन्तु ‘दर्शयन् मुहुर्मनसि नः स्मरं वीर यच्छसि।’ आप तो विभिन्न व्याज से बारंबार दर्शन देकर हमारे मन में अत्यंत तीव्र उत्कण्ठा, अविद्यमान मनःकामना को भी उद्भूत कर देते हैं। दुर्जन स्वभावत् प्रत्येक वस्तु का दुरुपयोग करता है और सज्जन स्वभावतः प्रत्येक वस्तु का सदुपयोग करता है। जैसे कोपश्च कोपे कथं न च’ उपकारों में क्रोध होता है; क्रोध से अधिक उपकारी और कौन हो सकता है? सज्जन इस घोर उपकारी पर ही क्रोध करते हैं। अन्य पर किया गया क्रोध अनर्थकारी है पर क्रोध सर्व-शुभ का हेतु है। इसी तरह सामान्यतः तृष्णा अनर्थकारिणी होने के कारण निन्द्यएवं त्याज्य है परन्तु भगव-दुन्मुखी तृष्णा सर्वहितकारिणी, सर्व-वन्द्य, सर्व-वांछनीय है।

“अजातपक्षा इव मातरं खगाः
स्तन्यं यथा वत्सतराः क्षुधार्ताः।
प्रियं प्रियेव व्युषितं विषण्णा
मनोऽरविन्दाक्ष दिदृक्षते त्वाम्।।”[1]

अर्थात, भक्त-वांछा है कि जैसे पक्षियों के बिना पंखवाले शावक किंवा अतृणाद बछड़े अपनी कल्याणमयी करुणामयी अम्बा के, अथवा प्रोषितभर्तृका नारी अपने प्रियतम प्यारे के आगमन की प्रतीक्षा बड़ी उत्कण्ठा के साथ करती रहती हैं वैसे ही, हे प्रभो! हमारा मन, हमारी अन्तरात्मा आपके मंगल-मय मुखारविन्द-दर्शन के लिए उत्कण्ठित बना रहे।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. श्री0 भा0 6/11/26

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क्रम संख्या विषय पृष्ठ संख्या
1. भूमिका 1
2. प्रवेशिका 21
3. गोपी गीत 1 23
4 गोपी गीत 2 63
5. गोपी गीत 3 125
6. गोपी गीत 4 154
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