गोपी गीत -करपात्री महाराज पृ. 311

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गोपी गीत -करपात्री महाराज

गोपी गीत 10

अम्बा पार्वती भी कहती हैंः-

‘महादेव अवगुण-भवन, विष्णु सकल गुणधाम।
जाकर मन रम जाहि सन, तेहि तेही सन काम।।’[1]


‘अब मैं जन्मु संभु हित हारा। को गुन दूषन करै विचारा।
जन्म कोटि लगि रगर हमारी। वरउँ संभु न त रहउँ कुंवारी।।’[2]

एक भक्त हमको मिले, वे कहने लगे ‘महाराज! हमारे शिव हैं न, उन्हीं से हमको मिला दीजिए- न उन से कुछ कम, न उनसे अधिक-बस, हमारे शिव से ही हमाको कृपा कर मिला दीजिए। यह अन्यूनातिरिक्त-भाव ही अत्यन्त स्तुत्य है। भगवान श्रीकृष्ण के प्रेम में तन्मय ये व्रजसीमन्तनीजन दारुण लोकापवाद के प्रति सर्वथा उदासीन हैं-‘अपने पिया के मैं अंक लगौंगी कलंक लगे तो लगै मोहि आली।’ इस अविचल कृष्ण-निष्ठा, लक्ष्य-निष्ठा के कारण ही गोपांगनाएँ सर्वबन्द्या हैं। मीरा ने भी गाया है- ‘मीरां गिरिधर हाथ बिकानी लोग कहैं बिगरी।’

भागवत की कथा है श्री गर्गाचार्यजी ने व्रज-वासियों को बताया था कि यदि एक बार भी व्रज-युवतियों को कृष्ण-सम्मिलन प्राप्त हुआ तो सम्पूर्ण व्रजवासियों को सौ वर्ष पर्यन्त कृष्ण-वियोग सहन करना पड़ेगा एतावता गुरुजनों द्वारा गोपकन्याओं को कृष्ण दर्शन एवं संस्पर्श के लिए बारम्बार वर्जन किया गया परन्तु जैसे प्रवाह के अवरोध से गति का वेग अधिकाधिक वृद्धिंगत होता जाता है, वैसे ही, गोपांगनाओं का कृष्ण-प्रेम भी गुरुजनों द्वारा बारम्बर अवरोध किये जाने पर अधिकाधिक प्रस्फुरित हुआ।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. मानस, बाल 80
  2. मानस, बाल 80/2 और 5

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गोपी गीत
क्रम संख्या विषय पृष्ठ संख्या
1. भूमिका 1
2. प्रवेशिका 21
3. गोपी गीत 1 23
4 गोपी गीत 2 63
5. गोपी गीत 3 125
6. गोपी गीत 4 154
7. गोपी गीत 5 185
8. गोपी गीत 6 213
9. गोपी गीत 7 256
10. गोपी गीत 8 271
11. गोपी गीत 9 292
12. गोपी गीत 10 304
13. गोपी गीत 11 319
14. गोपी गीत 12 336
15. गोपी गीत 13 364
16. गोपी गीत 14 389
17. गोपी गीत 15 391
18. गोपी गीत 16 412
19. गोपी गीत 17 454
20. गोपी गीत 18 499
21. गोपी गीत 19 537

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