गोपी गीत -करपात्री महाराजगोपी गीत 9वल्लभाचार्य जी कहते हैं- ‘ऐश्वर्यस्य समग्रस्य धर्मस्य यशसःश्रियः। अर्थात ऐश्वर्य, धर्म, यश, ज्ञान, वैराग्य एवं श्री इन छह भागों की सम्पूर्णता से संयुक्त जो हो वही भगवान् है। अस्तु, भगवद्-कथामृत में भी षड्-भग विद्यमान है एतवता भगवत-कथामृत ज्ञान-शक्ति संयुक्त है। भगवत तत्त्व-विज्ञान ही शोक-मोह निवर्तक है। भगवत साक्षात्कार के बिना शोक-मोह निवृत्ति सम्भाव नहीं। ‘मच्चित्ता मद्गतप्राणा बोधयन्तः परम्परम। तात्पर्य कि जो भगवत- चरित्र चिन्तन में, भगवद्-गुणानुसंधान में, भगवान की मधुर, मनोहर, मंगलमयी मूर्ति के चिन्तन में निरंतर संलग्न रहते हैं उनको भगवदनुकम्पा से भगवत- साक्षात्कार हो जाता है। भगवत कथन है, ‘ददामि बुद्धि योगं तं येन मामुपर्याति ते।’ अर्थात, जिस बुद्धि योग से मुझको प्राप्त किया जाता है वह बुद्धि-योग में अपने भक्त को दे देता हूँ। निपट-गंवारिन शबरी भीलनी के स्नेह से विवश हो भगवान् राघवेन्द्र उसके घर पधारे। पाणिनि के साथी कात्यायन कहते हैं:- ‘कल्पिसंपद्यमाने च भक्तिर्ज्ञानाय कल्पते’ अर्थात भक्ति ही ज्ञान का कारण हो जाती है। ‘भक्ति-र्ज्ञानाकारेण परिणमते इति’ तात्पर्य कि भक्ति ही ज्ञान बन जाती है; अतः भगवत कथामृत-श्रवण से ही ज्ञान भी हो जाता है। |