गोपी गीत -करपात्री महाराज पृ. 301

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गोपी गीत -करपात्री महाराज

गोपी गीत 9

वल्लभाचार्य जी कहते हैं-

‘ऐश्वर्यस्य समग्रस्य धर्मस्य यशसःश्रियः।
ज्ञानवैराग्ययोश्चैव षष्णां भग इतीरणा।।’[1]

अर्थात ऐश्वर्य, धर्म, यश, ज्ञान, वैराग्य एवं श्री इन छह भागों की सम्पूर्णता से संयुक्त जो हो वही भगवान् है। अस्तु, भगवद्-कथामृत में भी षड्-भग विद्यमान है एतवता भगवत-कथामृत ज्ञान-शक्ति संयुक्त है। भगवत तत्त्व-विज्ञान ही शोक-मोह निवर्तक है। भगवत साक्षात्कार के बिना शोक-मोह निवृत्ति सम्भाव नहीं।

‘मच्चित्ता मद्गतप्राणा बोधयन्तः परम्परम।
कथयन्तश्च मां नित्यं तुष्यन्ति च रमन्ति च ।।9।।
तेषां सततयुक्तानां भजतां प्रीति पूर्वकम।
ददामि बुद्धियोगं तं येन मामुपयान्ति ते ।।10।।[2]

तात्पर्य कि जो भगवत- चरित्र चिन्तन में, भगवद्-गुणानुसंधान में, भगवान की मधुर, मनोहर, मंगलमयी मूर्ति के चिन्तन में निरंतर संलग्न रहते हैं उनको भगवदनुकम्पा से भगवत- साक्षात्कार हो जाता है। भगवत कथन है, ‘ददामि बुद्धि योगं तं येन मामुपर्याति ते।’ अर्थात, जिस बुद्धि योग से मुझको प्राप्त किया जाता है वह बुद्धि-योग में अपने भक्त को दे देता हूँ। निपट-गंवारिन शबरी भीलनी के स्नेह से विवश हो भगवान् राघवेन्द्र उसके घर पधारे। पाणिनि के साथी कात्यायन कहते हैं:- ‘कल्पिसंपद्यमाने च भक्तिर्ज्ञानाय कल्पते’ अर्थात भक्ति ही ज्ञान का कारण हो जाती है। ‘भक्ति-र्ज्ञानाकारेण परिणमते इति’ तात्पर्य कि भक्ति ही ज्ञान बन जाती है; अतः भगवत कथामृत-श्रवण से ही ज्ञान भी हो जाता है।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. वि0 पु0 6।5।74
  2. श्रीम0 भा0 गी0 10

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गोपी गीत
क्रम संख्या विषय पृष्ठ संख्या
1. भूमिका 1
2. प्रवेशिका 21
3. गोपी गीत 1 23
4 गोपी गीत 2 63
5. गोपी गीत 3 125
6. गोपी गीत 4 154
7. गोपी गीत 5 185
8. गोपी गीत 6 213
9. गोपी गीत 7 256
10. गोपी गीत 8 271
11. गोपी गीत 9 292
12. गोपी गीत 10 304
13. गोपी गीत 11 319
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18. गोपी गीत 16 412
19. गोपी गीत 17 454
20. गोपी गीत 18 499
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