गोपी गीत -करपात्री महाराज पृ. 300

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गोपी गीत -करपात्री महाराज

गोपी गीत 9

मुग्धा ब्रजाङनाएँ कह रही हैं, हे श्याम-सुन्दर ‘कविभिरीड़ितं’ आपका यह यश कवियों द्वारा प्रशस्त है अतः वास्तविकता को स्पर्श नहीं करता। ‘कवयः किं न जल्पन्ति’ कवि क्या नहीं कह सकता? कविगण स्वानुभूत विषय की कल्पना करने में परम कुशल होते हैं ‘अतिशयोक्ति परायणे’ साथ ही वे अतिशयोक्ति परायण भी होते हैं। अतः कवियों द्वारा की गई स्तुति मान्य नहीं हो सकती। ‘कविभिरीड़ित’ आपकी कथा तत्त्वदर्शी त्रिकालज्ञ कवियों द्वारा प्रशस्त है। श्री ध्रुव जी की उक्ति हैः-

‘या निर्वृतिस्तनुभृतां तव पादपद्मध्यानात् भवज्जनकथाश्रवणेन वा स्यात्।
सा ब्रह्मणि स्वमहिमन्यपि नाथ मा भूत् किन्त्वन्तकासिलुलितात् पततां विमानात।[1]

अर्थात, हे प्रभो! अंतक की तलवार से विलुलित विमानों से गिरने वाले देवगणों के अमृत में वह स्वाद नहीं है जो आप के कथामृत में हैं। जो निवृत्ति सुख, आनन्द आपके चरणारविन्द के ध्यान एवं भवज्जन भगवद्-भक्तों की कथा-श्रवण से होता है वह स्वप्रकाश ब्रह्म में भी नहीं प्राप्त होता। भक्तों की कथा में भक्त के सम्बन्ध से भगवान् की भी कथा निश्चय ही आती है अतः भक्त-कथा-श्रवण भी आनन्दप्रद है।

स्वप्रकाश ब्रह्म स्वयं आनन्द का निधान है। आनन्द की कल्पना करते हुए जहाँ वाचस्पति की मति भी श्रान्त हो जाय ऐसा निरतिशय, अनन्त आनन्द ही ब्रह्मानन्द है; ब्रह्म-सुख निर्विवादः अचिन्तय, अनन्त, एवं निरवधिक है तथापि उसकी अनुभूत अन्तःकरण-शुद्धि सापेक्ष है। भिन्न-भिन्न साधक की अनुभूमियों में उनकी मनः स्थिति के अनुकूल अन्तर हो जाता है फलतः अनुभूतियों में तारतम्य मान्य है। इसी आधार पर ज्ञानियों में भी क्रमभेद स्वीकृत है। तत्त्व-साक्षात्कार होने पर भी अन्तःकरण में विक्षेप बाहुल्य के कारण ब्रह्म-तत्त्व की अनुभूति नहीं हो पाती; समाधि के दृढ़ अभ्यास से विक्षेप-शून्य अन्तःकरण से ही ब्रह्म-साक्षात्कार एवं जीवन्मुक्ति सुख का पूर्णतः अनुभव संभव है। जैसे सूक्ष्मवीक्षण यन्त्रोपादित सूर्य- स्वरूप में विशिष्टता दृष्टिगोचर होती है वेसे ही, भक्त अन्तःकरण पर लीला-शक्ति रूप सूक्ष्म वीक्षण-यन्त्रों-पादित भगवद्-स्वरूप में विचित्र चमत्कृति प्रादुर्भूत होती है।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. श्रीम0 भा0 4/9/10

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गोपी गीत
क्रम संख्या विषय पृष्ठ संख्या
1. भूमिका 1
2. प्रवेशिका 21
3. गोपी गीत 1 23
4 गोपी गीत 2 63
5. गोपी गीत 3 125
6. गोपी गीत 4 154
7. गोपी गीत 5 185
8. गोपी गीत 6 213
9. गोपी गीत 7 256
10. गोपी गीत 8 271
11. गोपी गीत 9 292
12. गोपी गीत 10 304
13. गोपी गीत 11 319
14. गोपी गीत 12 336
15. गोपी गीत 13 364
16. गोपी गीत 14 389
17. गोपी गीत 15 391
18. गोपी गीत 16 412
19. गोपी गीत 17 454
20. गोपी गीत 18 499
21. गोपी गीत 19 537

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