गोपी गीत -करपात्री महाराज पृ. 298

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गोपी गीत -करपात्री महाराज

गोपी गीत 9

अर्थात कोई गोपागंना अपनी सखी से कह रही है, हे सखी! यदि अपनी इस प्राणप्रिय सखी को एक क्षण के लिए भी सुख पहुँचाना चाहती हो तो उनका उदन्त न छेड़ क्योंकि उनको सुनकर इसकी मूर्च्छा भंग हो जावेगी; मूर्च्छा में तो कुछ देर के लिए शान्ति भी मिलती है। हे सखी! तू कोई और ही चर्चा चला जिससे कि यह कुछ देर के लिये कृष्ण को भूल जाय।

‘प्रत्याहृत्य मुनिः क्षणं विषयतो यस्मिन् मनोधित्सति,
वालासौविषयेषुधित्सति मनः प्रत्याहरन्ती ततः।
यस्य स्फूर्तिलवायहन्त हृदये योगी समुत्कण्ठते,
मुग्धेयं किलपश्य तस्य हृदयान्निष्क्रान्ति माकाङ्क्षते।।’[1]

योगीन्द्र, मुनीन्द्र भी यम, नियम, प्राणायाम, प्रत्याहार, ध्यान, धारणा एवं समाधि के द्वारा संसार से मन को हटा कर भगवत् चरणों में लगाने का सतत प्रयास करते हैं परन्तु ये प्रेमरस पगी गोपालियाँ अपने प्रियतम श्रीकृष्ण को भूलकर एक क्षण के लिए भी उनके विप्रयोग-जन्य दारुण-दाह से शान्ति पाना चाहती हैं। ‘कविभिरीड़ितं’ व्यास, वशिष्ठादिक महर्षिगण भी देव-भोग्य अमृत एवं मोक्षरूप अमृत, दोनों का ही वर्णन नहीं करते क्योंकि ज्ञानी को मोक्ष में स्पृहा नहीं रह जाती। ‘तत्परं पुरुषरख्याते गुर्णवैतृष्ण्यम्’[2]अर्थात पुरुष-साक्षात्कार से गुणों में वितृष्णा हो जाती है। तात्पर्य कि ‘सत्त्वपुरुषान्यताख्यातिर्हेयपक्षे वत्र्तते’ सत्त्वपृरुषान्यताख्याति रूप जो सर्वोत्कृष्ट सत्त्व-परिणाम है वह भी हेय-पद्वा में हो जाता है क्योंकि शक्ति अपरिणामिनी, अप्रतिसंक्रमण शीला, नित्या, शुद्धा एवं शान्ता है एतावता ‘गुणवैतृष्ण्यं’ गुणों से भी वितृष्णा हो जाती है।

‘निवृत्ततर्षैरुपगीयमानाद् भवौषधात् श्रोत्रमनोऽभिरामात्।
क उत्तमश्लोकगुणानुवादात्पुमान्विरज्येत विना पशुघ्नात्।।’[3]

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. 2/17
  2. पा0 यो0 सू0 1/16
  3. श्रीम0 भा0 10/1/4

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गोपी गीत
क्रम संख्या विषय पृष्ठ संख्या
1. भूमिका 1
2. प्रवेशिका 21
3. गोपी गीत 1 23
4 गोपी गीत 2 63
5. गोपी गीत 3 125
6. गोपी गीत 4 154
7. गोपी गीत 5 185
8. गोपी गीत 6 213
9. गोपी गीत 7 256
10. गोपी गीत 8 271
11. गोपी गीत 9 292
12. गोपी गीत 10 304
13. गोपी गीत 11 319
14. गोपी गीत 12 336
15. गोपी गीत 13 364
16. गोपी गीत 14 389
17. गोपी गीत 15 391
18. गोपी गीत 16 412
19. गोपी गीत 17 454
20. गोपी गीत 18 499
21. गोपी गीत 19 537

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