गोपी गीत -करपात्री महाराज पृ. 296

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गोपी गीत -करपात्री महाराज

गोपी गीत 9

‘श्रोतव्यादीनि राजेन्द्र नृणां सन्ति सहस्रशः।’[1]

तस्माद भारत सर्वात्मा भगवान् हरिरीश्वरः।’[2]

संसार में यों तो श्रोतव्य, मन्तव्य, निदिध्यासितव्य का पारावार नहीं है, हे राजन्! एकमात्र सर्वात्मा हरि ही सर्वश्रेष्ठ श्रोतव्य, कीर्तितव्य, स्मर्तव्य तत्त्व है अतः सर्वतो भावेन, सदा सर्वदा उन्हीं का श्रवण, मनन एवं विचार करना ही जीवन का सार है अन्यथा जीवन का अपव्यय होता है जो व्यर्थ है। गोपाङनाएँ कह रही हैं कि हे सखे! मरण के दारुण दुःख से भी कोटि-गुणाधिक आपके विप्रयोग-जन्य जीव्रताप को सहन करती हुई हमको इन भूरि-दाताओं ने आपका कथामृत सुना-सुना कर जिला रखा है। हे सखे! ऐसा नहीं है कि हमें आपके चरणों में प्रेम नहीं है। आपके कथामृत श्रवण से जीवन-यापन करने वाली हम बनिताओं के लिए आप अवश्य ही अपने जलरूहानन के मधुर अधामृत रूप महौषध को कृपा कर प्रदान करें। हे सखे! आपके विप्रयोग-जन्य सन्तान से दग्ध होते हुए भी हम जीवित हैं यही हमारा कलंक है। हमारे इस कलंक का, हमारे इस जीवन का रहस्य आपका कथामृत है जो संतप्त जीवों को जीवन प्रदान करने वाला है। ब्रह्मा जी कह रहे हैं:-

‘ज्ञाने प्रयासमुदपास्य नमन्त एव जीवन्ति सन्मुखरितां भवदीयवार्ताम।
स्थानेस्थिताः श्रुतिगतां तनुवांङ्मनोभिर्ये प्रायशाऽजित जितोऽप्यसि तैस्त्रिलौक्याम।[3]

अर्थात, जो भक्त जन ज्ञान में तनितक भी प्रयास न कर केवल तुम्हारी कथा-सुधा को नमन करते हैं, कानों से सुनी हुई तुम्हारी कथा का मनसा-वाचा सम्मान करते हैं वे मुक्ति पद के दायभागी होते हैं।
भक्ति से रहित ज्ञान निरर्थक है। जैसे ‘तेषामसौ क्लेशल एव शिष्यते नान्य-द्यथा स्थूलतुषावघातिनाम्।’[4] स्थूल तुश (भूसी) को कूटने का परिश्रम निरर्थक है।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. श्रीम0 भा0 2/1/2
  2. श्रीम0 भा0 2/2/5
  3. श्रीम0 भा0 10/14/3
  4. श्रीम0 भा0 10/14/4

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गोपी गीत
क्रम संख्या विषय पृष्ठ संख्या
1. भूमिका 1
2. प्रवेशिका 21
3. गोपी गीत 1 23
4 गोपी गीत 2 63
5. गोपी गीत 3 125
6. गोपी गीत 4 154
7. गोपी गीत 5 185
8. गोपी गीत 6 213
9. गोपी गीत 7 256
10. गोपी गीत 8 271
11. गोपी गीत 9 292
12. गोपी गीत 10 304
13. गोपी गीत 11 319
14. गोपी गीत 12 336
15. गोपी गीत 13 364
16. गोपी गीत 14 389
17. गोपी गीत 15 391
18. गोपी गीत 16 412
19. गोपी गीत 17 454
20. गोपी गीत 18 499
21. गोपी गीत 19 537

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