गोपी गीत -करपात्री महाराजगोपी गीत 5‘वृष्णिवंशावतंस, वृष्णिधुर्य ते’ आप वृष्णि-कुल में परम श्रेष्ठ हैं, निजकुल-कमल-प्रभाकर हैं। सनातन गोस्वामी इस विशेषण का अर्थ करते हैं ‘निजाशेषगुणमाधुरीरूपादिप्रकटनाय यदुकुले अवतीर्णः’ जो निजी अशेष गुण, माधुर्य एवं रूपादि के प्राकट्य हेतु ही यदुकुल में अवतीर्ण हुआ हो, गुण-गणों का उपयोग ही उनका प्राकट्य है। ईश्वर में अशेष गुण विद्यमान हैं। समय-समय पर वराह, मत्स्य, नृसिंह आदि अनेक स्वरूपों में श्रीमन्नारायण विष्णु का अवतरण हुआ; प्रत्येक अवतरण में अशेष गुण विद्यमान होते हुए भी उनका प्राकट्य नहीं हुआ परन्तु व्रजेन्द्रनन्दन, गोपाल श्रीकृष्णचन्द्र स्वरूप में ही दिव्यगुण-माधुरी रूपादि अशेषतः प्रकट हैं। ‘श्रीहरि भक्ति-रसामृत-सिन्धु’कार और ‘भक्ति-रसायन’कार भगवान् श्रीकृष्णचन्द्र को ही प्रेम का आलम्बन मानते हैं। श्रृंगार-रस की विभिन्न अवस्थाओं का प्रदर्शन केवल श्रीकृष्ण स्वरूप में ही प्राप्त होता है। उदाहरणतः राघवेन्द्र रामचन्द्र स्वरूप में परकीया-रति की कल्पना भी नहीं होती। यद्यपि अयोध्या के कुल आधुनिक रसिकजनों ने ‘रामस्य परमाः स्त्रियः’[1] जनकनन्दिनी जानकी से भिन्न अपरिगणित स्त्रियों की असंगत कल्पना कर डाली है। ‘आनन्द-रामायण’ में ‘गोपी-गीत’ की शैली व छन्द में ही एक गीत है; जैसे ‘गोपी-गीत’ में श्रीकृष्ण के प्रति गोपांगनाओं ने अपना विरह व्यक्त किया है, वैसे ही इसमें (आनन्द-रामायण में प्राप्त गीत में) श्री रामचन्द्र के प्रति विरहाभिव्यक्ति की गई है। परन्तु यह सर्वतन्त्र सिद्धान्त नहीं है; श्रीराम का एकपत्नीव्रत ही असाधारण रूप से संसार में प्रसिद्ध है, वही उनका आदर्श भी है। व्रजेन्द्रनन्दन गोपाल श्रीकृष्ण स्वरूप में ही प्रेम की विभिन्न अवस्थाओं का सांगोपांग उदाहरण प्राप्त होता है। श्रीरामभद्र मर्यादापुरुषोत्तम, धीरोदात्त नायक स्वरूप में अवतरित हैं; व्रजेन्द्रनन्दन गोपाल श्रीकृष्ण लीला पुरुषोत्तम हैं; यथावसर श्रीकृष्ण स्वरूप में भी धीरोदात्त गुणों का प्रस्फुटन होता है तथापि ललित लीलाएँ ही इस स्वरूप का वैशिष्ट्य है। गोपकुल-प्रसूत, श्रीकृष्ण वृष्णिधुर्य यदुवंशावतंस भी हैं। नंदादिक यदुवंश ही गोपवंश है। ‘गोपाल-चम्पू’ में इसका विशिष्ट विवरण इस प्रकार है। देवमीढ़ नामक कोई यदुवंशी राजा थे; उनकी दो पत्नियाँ थीं; एक वैश्य-वंश की, दूसरी क्षत्रिय-वंश की। देवमीढ़ एवं उसकी वैश्य-पत्नी से पर्जन्य नामक गोप उत्पन्न हुआ। उस पर्जन्य गोप के वंश में नन्द, सुनन्द, उपनन्द आदिकों का जन्म हुआ। गोपवंश का मूलपुरुष पर्जन्य यदुवंशी नरपति देवमीढ़ का पुत्र था अतः वृष्णिधर्म का एक अर्थ गोपेन्द्र-धुर्य-गोपवंश-प्रसूत गोप-कुमार भी है। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ वा. रा़. 2। 8। 12