गोपी गीत -करपात्री महाराजगोपी गीत 5श्रीकृष्ण ही व्रजेन्द्रनन्दन गोपकुमार हैं। व्रजवासियों की यह मान्यता है कि पूर्णतम पुरुषोत्तम श्रीकृष्ण का जन्म नन्द-भवन में ही हुआ; मथुरा में तो देवकीनन्दन कृष्ण का जन्म हुआ था; देवकीनन्दन श्रीकृष्ण ईश्वर थे। कारागृह के ताले स्वतः टूट गए और द्वार स्वतः खुल गए। इसी समय, व्रजधाम में ‘नन्दगोपगृहे जाता यशोदा गर्भसंभवा। ततस्तौ नाशयिष्यामि विन्ध्याचलनिवासिनी’ यशोदा के गर्भ से श्रीकृष्ण एवं उनकी सहोदरा योगमाया का प्रादुर्भाव हुआ। योगमाया के प्रभाव से ही इस तथ्य को कोई नहीं जान पाया। बालक श्रीकृष्ण के दर्शन किसी के लिए भी संभव न हुए। यही कारण है कि कृष्ण-जन्माष्टमी की रात्रि ‘मोहरात्रि’ कहलाती है। ‘कालरात्रिर्महारात्रिर्मोहरात्रिश्च दारुणा’ (दुर्गासप्तशती) जिस रात्रि में सब मोह को प्राप्त हुए वही ‘मोहरात्रि’ है। व्रजधाम में नन्द-गृह में यशोदा के गर्भ से आविर्भूत पूर्णतम पुरुषोत्तम परमानन्दकन्द श्रीकृष्ण ही नन्द-आत्मज हैं। ‘नन्दस्त्वात्मज उत्पन्ने जाताह्लादो महामनाः’ इस उक्ति में स्पष्टतः ही श्रीकृष्ण को नन्दात्मज ही कहा गया है। |