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गीता प्रबोधनी -स्वामी रामसुखदास
तेरहवाँ अध्याय
ऋषिभिर्बहुधा गीतं छन्दोभिर्विविधै: पृथक् । व्याख्या-पाँच महाभूत, एक अहंकार और एक बुद्धि- ये सात ‘प्रकृति-विकृति’ हैं, मूल प्रकृति केवल ‘प्रकृति’ है और दस इन्द्रियाँ, एक मन और पाँच ज्ञानेन्द्रियों के विषय- ये सोलह केवल ‘विकृति’ हैं। इस तरह इन चौबीस तत्त्वों के समुदाय का नाम ‘क्षेत्र’ है। इसी का एक तुच्छ अंश यह मनुष्य शरीर है। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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