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गीता-प्रबंध -श्री अरविन्द भाग-2
खंड-2 : परम रहस्य
16.आध्यात्मिक कर्म की परिपूर्णता
परंतु इस सोपान के परे एक और महत्तर गति है, अपने अंतः स्थित भगवान के प्रति अपने सब कार्मों का आंतरिक समर्पण। क्योंकि, अनंत प्रकृति ही हमारे कर्मों को प्रेरित करती है और इसके अंदर तथा ऊपर अवस्थित ईश्वरीय संकल्प ही हमसे कर्म की मांग करता है, हमारा अहंभाव कर्म के सम्बंध में जो चुनाव करता है या यह उसे जो रूप प्रदान करता है वह हमारे सत्त्व, रज, तम-रूपी गुण का अंशदान है, निम्नतरी प्रकृति से जनित विकृति है। इस विकृति के पैदा होने के कारण यह है कि अहं अपने-आपको कर्ता समझता है; कर्म की धारा सीमित वैयक्तिक प्रकृति का रूप धारण कर लेती है और जीव उससे तथा उसके संकीर्ण रूपों से बंध जाता है और कर्म को अपने अंतर की असीम शक्ति से शुद्ध और स्वच्छंद रूप में प्रवाहित नहीं होने देता। अहं कर्म और उसके परिणाम से आबद्ध हो जाता है; जैसे वह कर्म आरंभ करने का दायित्व लेने तथा उसके लिये वैयक्तिक संकल्प करने का दावा करता है वैसे ही उसे वैयक्तिक परिणाम और प्रतिफल को भी भोगना पड़ता है।
मुक्ति और पूर्ण कर्म तो तभी किया जा सकता है यदि पहले हम अपना कर्म तथा उसका आरंभ अपनी सत्ता के दिव्य स्वामी के प्रति निवेदित करें और फिर अंत में उसे पूर्ण रूप से उन्हें समर्पित कर दें; क्योंकि हम अनुभव करते हैं कि हमारे अंदर अवस्थित परम उपस्थिति उसे उत्तरोत्तर अपने हाथ में ले रही है, हमरी अंतरात्मा एक आंतरिक शक्ति तथा देतत्त्व के साथ प्रगाढ़ सान्निध्य तथा घनिष्ट एकत्व में लीन होती जा रही है और कर्म सीधे महत्तर आत्मा से, सनातन सत्ता की सर्वज्ञ, अनंत, विश्वगत शक्ति से निःसृत हो रहा है, क्षुद्र व्यक्तिगत अहं के अज्ञान से नहीं तब भी कर्म का चुनाव तथा गठन तो प्रकृति के अनुसार ही होता है पर वह होता है पूर्ण रूप से हमारी प्रकृति के अंदर विद्यमान भगवत्संकल्प के द्वारा, और अतएव उसका बाह्य रूप चाहे जो हो पर वह अंदर से मुक्त और पूर्ण ही होता है।
वह अनंत की इस आभ्यतंर आध्यात्मिक छाप को लेकर आता है कि यही करणीय कार्य है, कर्तव्यं कर्म, कर्म और उसका एक-एक पग कर्म के सर्वज्ञ स्वामी की गतिविधयों में नियत हुआ रहता है। मुक्त व्यक्ति जब अपनी करणात्मक व्यक्तिगत सत्ता को तथा अपनी प्रकृति के विशेष संकल्प एवं बल को कर्म का साधन तथा निमित्त बनाकर उसमें योगदान करता है तब भी उसकी आत्मा अपनी निर्व्यक्तिकता में मुक्त रहते है।
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