गीता-प्रबंध -श्री अरविन्द5.कुरुक्षेत्र
केवल आत्मबल का प्रयोग करेंगे, युद्ध करके या भौतिक बल प्रयोग से अपनी रक्षा का उपाय करके हम किसी का नाश नहीं करेंगें? अच्छी बात है, और जब तक आत्म बल अमोघ न उठे तब तक मनुष्यों और राष्ट्रों में जो असुरी बल है वह चाहें हमें रौंदता रहे, हमारे टुकड़े-टुकड़े करता रहे, हमें जबह करता रहे, हमें जलाता रहे, भ्रष्ट करता रहे, जैसा करते हुए आज हम उसे देख रहे हैं, तब तो वह इस काम को और भी मौज से और बिना किसी बाधा-विघ्न के करेगा। और, आपने अपने अप्रतीकार के द्वारा उतनी ही जानें गवाईं होतीं जितनी की दूसरे हिंसा का सहारा लेकर गंवाते; फिर भी आपने एक ऐसा आदर्श तो रखा है जो कभी अच्छी दशा भी ला सकता है या कम-से-कम जिसे अच्छी लानी चाहिये। परंतु आत्म बल भी, जब वह अमोघ हो उठता है तब, नाश करता है। जिन्होंने आंखे खोलकर आत्मबल का प्रयोग किया है वही जानते हैं कि यह तलवार और तोप-बंदूक से कितना अधिक भयंकर और नाशकारी होता है। और, जो अपनी दृष्टि को किसी विशिष्ट कर्म और उसके सद्यः फल तक ही सीमित नहीं रखते वे ही यह भी देख सकते हैं कि आत्म बल के प्रयोग के बाद उसके परिणाम कितने प्रचंड होते हैं, उनसे कितना नाश होता है और जो जीवन उस विनष्ट क्षेत्र पर आश्रित रहता था या पलता था उसकी भी कितनी बरबादी होती है। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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