विषय सूचीरासपञ्चाध्यायी -स्वामी अखण्डानन्द सरस्वतीप्रवचन 6योगमाया का आश्रय लेने का अर्थमनश्चक्रे योगमायामुपाश्रितः मनुष्य कर्म करता है आनन्द के लिए और मनुष्य ज्ञान भी प्राप्त करता है आनन्द के लिए। आनन्द तो जीवन का प्रयोजन है। प्रयोजन किसको बोलते हैं? अवगतं सत् आत्मनि इष्यते स्वनिष्ठतया इष्यते- मालूम पड़ने पर मन हो कि यह हमारे साथ ही रहे, हमारे अन्दर ही रहे, उसी को बोलते हैं, प्रयोजन, उसी को बोलते हैं मजा, आनन्द जो लोग वेदान्त- चिन्तन करते हैं या कर्म करते हैं, वे सब निठल्ले रह जाते यदि भगवान् रासलीला करके आनन्द को प्रकट न करते, आनन्द की अभिव्यंजना, आनन्द की अभिव्यक्ति न करते। नौकरी इसलिए नहीं करते कि रुपया मिलता है, रुपये से मजा मिलता है इसलिए नौकरी करते हैं। व्यापार इसलिए नहीं करते कि दुकान में बहुत सामान रहता है, इसलिए करते हैं कि सामान से मजा मिलता है। तो जीवन का जो प्रयोजनीय पदार्थ है, प्रयोजनीय वस्तु है, वह आनन्द है। यह जो रासलीला है, इसमें देखो- भगवान् स्वयं आनन्द कैसे लेते हैं? ‘रात्रि ताः वीक्ष्य रात्रीर्वीक्ष्य शरदोत्फुल्लमल्लिका वीक्ष्य’ यह ऐश्वर्य पक्ष का अर्थ है। जैसे कोई बगीचा ले, बढ़िया-बढ़िया फूल लगावे, पौधा लगावे, उसको सींचे, खाद दे और जब खूब अच्छी-अच्छी जाति के गुलाब उसमें खिलें तो जाकर उनको देखे, उनमें घूमे, उनको देख-देखकर, उनकी सुगन्ध, उनके सौन्दर्य का आनन्द ले, इसी प्रकार भगवान् यह सृष्टि बनाते हैं। ‘ताः वीक्ष्य’ गोपियों को बनाया और अपने आत्मा में, अपने स्वरूप में जो सच्चिदानन्द है वह गोपियों में स्थापित किया। ‘रात्रीर्वीक्ष्य’ रातें बनायी बड़ी सुन्दर मान काल की सृष्टि की। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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