विषय सूचीरासपञ्चाध्यायी -स्वामी अखण्डानन्द सरस्वतीरास की दिव्यता का ध्यानतो ईश्वर कैसा- ‘अप्राणः हि अमना शुभ्रा।’ अब बोले- एक चीज ऐसी आयी, परमात्मा के सामने, कि ये रात, ये वृन्दावन, ये प्रेममयी गोपी! ‘जादू तो वे जो सिर पर चढ़कर बोले।’ ये यथा मां प्रपद्यन्ते तांस्थैव भजाम्यहम् । गोपी ने कहा- मैंने तुम्हारे लिए गाँव छोड़ दिया। तुम्हारे लिए संबंधी छोड़ दिए, तुम्हारे लिए खाना-पीना-भोग छोड़ दिया, सब संबंध छोड़कर- ‘प्राप्ता विसृज्य वसतीः त्वदुपासनाशाः’ हम बस्ती छोड़कर आयी हैं। ‘संत्यज्य सर्वविषयान् तव पादमूलं भक्ताः’ हम संपूर्ण विषयों का परित्याग करके तुम्हारे चरणों में आयी हैं। अब भगवान् सोच में पड़ गये कि अरे तुम अपने त्याग की सफाई देती हो, हमने ये छोड़ा, वो छोड़ा; क्यों? अब गोपियाँ क्या बोलें? तो भगवान् को याद आयी ‘ये यथा मां प्रपद्यन्ते तांस्तथैव भजाम्यहम्।’ गोपियों ने हमारे लिए स्थान छोड़ा, घर छोड़ दिया, बस्ती छोड़ दी, तो परब्रह्म परमात्मा ने कहा- कि हम क्या छोड़ें? बोले कि हम अपनी अधिष्ठानता छोड़े तब बनेगा काम। अधिष्ठान छोड़कर अध्यस्तता स्वीकार करें, हम भी अपने ब्रह्मपने को छोड़ करके व्यक्तिपना ग्रहण करें। गोपियों ने अपना धर्म छोड़ा तो भगवान् ने कहा- हम भी अपना धर्म छोड़ते हैं। जो हमारे लिए सब छोड़ता है उसके लिए हम भी सब छोड़ते हैं। तुमने जीव-धर्म छोड़ा, हम ब्रह्मधर्म छोड़ते हैं- अपनी सर्वज्ञता, व्यापकता, असंगता सब छोड़ते हैं। बोले- ब्रह्मधर्म क्या कभी छूटता है? कहा- छूटता नहीं है, वह तो ऐसी चीज है, कि छूटै नहीं छोड़े, छोड़े नहीं छूटता। श्रीवल्लभाचार्यजी महाराज ने कहा- ‘प्राप्तव्य इत्यु के प्राप्तो न भवति त्यक्तव्य इति उक्ते त्यक्तो न भवति।’ कोई कहे भगवान् को यूँ पकड़ा, बाँध लिया, तो वह बँधता नहीं; कोई कहे जाओ ईश्वर को छोड़ दिया, तो तुम्हारे छोड़ने से वह छूटता नहीं। यह तो महाराज ऐसा है कि एक बार गला पकड़ ले तो कहता है कि बाबा! हमको पकड़ना ही आता है, हमको छोड़ना आता ही नहीं। एक बड़ी विचित्र बात है- देखो, रस्सी जल जाती है लेकिन उसकी ऐंठन मिटती नहीं है। ये जो ऐंठन है इसके लिए संस्कृत में शब्द ‘मुर’ जैसे मुड़े हुए तार होते हैं, जिससे खेत की बाड़ बनाते हैं, संस्कृत में ‘मुर’ शब्द उसी के लिए है। मुरका ही ‘मुड़’ हो गया। भौमासुर ने जो अपने किले के चारों ओर बाड़ बनायी थी वह मुर नामक बाँस की बाड़ बनायी थी। ये जो ऐंठन वाले लोग हैं न, ये मुर हैं। इसको काटकर मिलते हैं भगवान्। इसलिए भगवान् का नाम मुरारि है। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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