विषय सूचीरासपञ्चाध्यायी -स्वामी अखण्डानन्द सरस्वतीयोगमाया का आश्रय लेने का अर्थवृन्दावन धाम की सृष्टि की। स्थान भी सच्चिदानन्दमय, समय भी सच्चिदानन्दमय, व्यक्ति भी सच्चिदानन्दमय शरदोत्फुल्लमल्लिका, एक रोते हुए आदमी को हँसाया और उसको हँसाकर स्वयं हँसने लगे। आनन्द लेने की पद्धति यही है, अगर किसी से मजा लेना हो तो पहले मजा देना चाहिए। अगर वृन्दावन से श्रीकृष्ण आनन्द लेना चाहते हैं, गोपियों से आनन्द लेना चाहते हैं, रात्रि से आनन्द लेना चाहते हैं तो पहले उनको आनन्द देंगे फिर उनसे आनन्द लेंगे। बिना दिए कोई ले नहीं सकता। शरदोत्फुल्लामल्लिका- यहाँ शरदि फुल्लाः मल्लिकाः यासु ता रात्रीः ऐसा ठीक नहीं है? क्योंकि तब शरदुत्फुल्लामल्लिका होगा, शरदोत्फुल्लमल्लिका नहीं होगा। बोले यहाँ ‘शरदा’ शब्द है, शरदायां उत्फुल्ला मल्लिका मल्लिका यासु शरदोत्फुल्लमल्लिकाः- अथवा शरदा तृतीयान्त हो शरदा हेतु भूतया, माने यस्मात् कारणात् तदानीं शरद ऋतुर्वर्तते- अतः शरदाहेतुभूतया शरदऋतु के कारण मल्लिका खिली हुई है। बेला, चमेली सब अच्छे-अच्छे फूल खिले हुए हैं। इन फूलों की सुगन्ध आने से, इनको देखने से, हृदय में एक दिव्य लालसा उत्पन्न होती है कि हम कृष्ण से मिलें। संसार में लोग छोटी-मोटी चीज देखते हैं, फिर उनकी चाह होती है। रुपया चाहिए, कपड़ा चाहिए, भोग चाहिए परंतु यह कहाँ मन में आता है कि कृष्ण चाहिए। लेकिन जब वृन्दावन का कदम्ब देखते हैं तब इच्छा होती है कि इसकी डालपर बैठकर बाँसुरी बजाने वाला चाहिए। जब वृन्दावन की धूल देखते हैं तब मन में आता है कि इसमें लोट-लोटकर जिस बालक ने क्रीड़ा की है वह चाहिए। देखो बम्बई में घूमो, तो- यह अमुक भाई का मकान है, अमुक भाई का मकान है, यह अमुक बहन का मकान है, यही न! पर वृन्दावन में घूमो तो यह राधावल्लभ का मन्दिर है, यह राधारमण का मन्दिर है, यहा विहारी जी का मंदिर है। यहाँ आदमियों की याद आती है और यहाँ आदमियों का सान्निध्य है और वृन्दावन में मनुष्यों की याद नहीं, मनुष्यों का स्वामित्व नहीं, कृष्ण का स्वामित्व और कृष्ण की मुरली। एक-एक चीज उसी की याद दिलाती है। यहाँ मृद्-भक्षण किया, यहाँ कालियदमन किया, यहाँ चीरहरण किया, यहाँ रासलीला की, सेवाकुञ्ज है, रात में जब रास करते-करते श्रीजी थक जाती हैं तब भगवान् पाँव दबाते हैं। यह निधिवन है, यहाँ विहारी जी प्रकट होते हैं। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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