हित हरिवंश गोस्वामी -ललिताचरण गोस्वामी पृ. 265

श्रीहित हरिवंश गोस्वामी:संप्रदाय और साहित्य -ललिताचरण गोस्वामी

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साहित्य
श्रीहरिराम व्‍यास (सं. 1549-1655)


'रसिक अनन्‍यमाल' के व्‍यासजी को दीर्घायु प्राप्‍त हुई थी। सौ वर्ष से अधिक अवस्‍था मानने पर उनका निकुंज गमन-काल से. 1655 के लगभग ठहरता है। ध्रुवदास जी ने अपनी 'भक्‍त नामावली' में व्‍यासजी के सम्‍बन्‍ध में जो दोहे कहे हैं, उनसे मालुम होता है कि इनकी रचना ध्रुवदासजी ने व्‍यासजी के निकुंज-गमन के थोड़े दिन बाद ही की है।

कहनी करनी करि गयौ एक व्‍यास इहि काल।
लोक-वेद तजिके भजे राधावल्‍लभ लाल।।[1]

'भक्‍त नामावली' के रचना-काल के सम्‍बन्‍ध में विद्वानों में मत भेद है। 'भक्‍त नामावली के अंतिम नाम 'भक्‍त नरा-यण' का है जो 'भक्‍तमाल' के कर्त्‍ता नारायणदास जी उर्फ नाभा जी हैं।

भक्‍त नरायन भक्‍त सब, धरै हिये द्दढ़ प्रीति।
धरनी आछी भांति सौं, जैसी जाकी रीति।।

नाभा जी का नाम बिलकुल अंत में देखकर यह अनुमान होता है कि 'भक्‍तमाल की रचना के थोड़े दिन बाद ही 'भक्‍त नामावली' की रचना हुई है। 'भक्‍तमाल का क्षेत्र बहुत विस्‍तृत हैं। इसमें नाभा जी ने प्रागैतिहासिक काल के भक्‍तों से लेकर अपने समय तक के प्राय: सभी प्रकार के भक्‍तों का वर्णन किया है। इसमें अनेक कृष्‍णोपासक भक्‍तों का भी परिचय दिया हुआ है किन्‍तु उनकी संख्‍या कम है। ध्रुवदास जी ने कृष्‍णोपासक रसिक भक्‍तों का परिचय देने के लिये ही 'भक्‍त नामावली की रचना की है। ऊपर उद्धृत 'भक्‍त नरायन' वाले दोहे के बाद ही यह दोहा मिलता है-

रसिक भक्‍त भूतल घने लघु मति क्‍यों कहें जाहि।
बुधि प्रमान गाये कछू जो आये उर माहिं।।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. भक्‍त नामावली

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विषय पृष्ठ संख्या
चरित्र
श्री हरिवंश चरित्र के उपादान 10
सिद्धान्त
प्रमाण-ग्रन्थ 29
प्रमेय
प्रमेय 38
हित की रस-रूपता 50
द्विदल 58
विशुद्ध प्रेम का स्वरूप 69
प्रेम और रूप 78
हित वृन्‍दावन 82
हित-युगल 97
युगल-केलि (प्रेम-विहार) 100
श्‍याम-सुन्‍दर 13
श्रीराधा 125
राधा-चरण -प्राधान्‍य 135
सहचरी 140
श्री हित हरिवंश 153
उपासना-मार्ग
उपासना-मार्ग 162
परिचर्या 178
प्रकट-सेवा 181
भावना 186
नित्य-विहार 188
नाम 193
वाणी 199
साहित्य
सम्प्रदाय का साहित्य 207
श्रीहित हरिवंश काल 252
श्री धु्रवदास काल 308
श्री हित रूपलाल काल 369
अर्वाचीन काल 442
ब्रजभाषा-गद्य 456
संस्कृत साहित्य
संस्कृत साहित्य 468
अंतिम पृष्ठ 508

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